Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 184
________________ उक्त कथन व्यवहारिक तथा दार्शनिक किसी भी दृष्टि से संगत नही माना जा सकता है। आस्तिक-नास्तिक शब्दो को व्याकरणसम्मत परिभाषा आगे चलकर किस प्रकार परिवर्तित कर दी गई और उसके साथ ईश्वर को कैसे जोड़ा गया? क्यो जोड़ा गया ? 'वेदनिन्दको नास्तिक." की कल्पना के पीछे क्या अभिप्राय रहा हुआ है ? इन सब प्रश्नो के समाधान प्राप्त करने के लिए हमारे सहृदय पाठकों को परमश्रद्धेय जैनधर्मदिवाकर, आचार्य-सम्राट् गुरुदेव पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज द्वारा विनिर्मित "आस्तिक-नास्तिक-समीक्षा-" नामक पुस्तिका का अध्ययन करना चाहिए। यह पुस्तिका-जैनगास्त्रमाला कार्यालय, जैनस्थानक, लुधियाना, से प्राप्त की जा सकती है। तुन्हे ईश्वर को दण्ढने कहा जाना है ? क्या गरीव, और निर्वल ईश्वर नही है ? पहले उन्ही की पूजा क्यो नही करते? तुम गंगा के किनारे खड़े हो कर कूया क्यो खोदते हो ? -स्वामी विवेकानन्द शुद्ध बनना और दूसरो को भलाई करना ही सब उपासनायो का सार है। जो गरोवो, निर्वलो और पोडितों मे शिव को देखता है, वहीं वास्तव में गिव का उपासक है। - स्वामी विवेकानन्द - - -

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