________________
जीव कर्मफल भोगने मे परतत्र है -"। भगवान महावीर का विश्वास है कि कर्मों का फल ईश्वर नही देता, ईश्वर का उसके साथ कोई सम्बन्ध नही है। कर्म-परमाणुओं मे स्वय ही फल देने की क्षमता है। मदिरा का नशा मदरासेवो को जैसे स्वत ही चढ जाता है, उसके लिए किसी अन्य शक्ति की अपेक्षा नही रहती है, इसी भाति कर्म अपना फल समय आने पर स्वय ही दे डालते है, इस मे भी ईश्वर आदि किसी शक्ति को माध्यम बनाने की आवश्यकता नही है। कर्मफल भोगने मे जीव की परतत्रता का इतना ही रहस्य कि जीव की अनिच्छा से कर्म-परमाणुरो का शुभाशुभ परिणाम (फल) रुक नही सकता। वह तो प्रत्येक दशा मे उसे भोगना ही पड़ता है।
कर्मवाद और साम्यवादभगवान महावीर का कर्मवाद आज की वैज्ञानिक भापा मे साम्यवाद कहा जा सकता है। जिस प्रकार साम्यवाद ससार को समानता का उपदेश देता है। उसी प्रकार भगवान महावीर का कर्मवाद भी प्रत्येक आत्मा को समानता की वात कहता है। वह बतलाता है कि जैसी आत्मा ब्राह्मण मे है, वैसी ही आत्मा शूद्र मे भी है । जैसी आत्मा राजा मे है वैसो ही रक मे है,इसी प्रकार जैसी आत्मा योगियो मे है वैसोही भोगियो मे है। कर्मवाद ने आत्मा को ही महत्त्व दिया है, जड गरीर का इसके यहा कोई प्रश्न नही है । शरीर काला है या गोरा, छोटा है या वड़ा, सुन्दर है या असुन्दर, इससे काई मतलव नहीं है। कर्मवाद आत्मिक आचरण को आगे रखकर ही मनुष्य के सुन्दर या असुन्दर होने का निर्णय करता है । कर्मवाद का विश्वास है कि