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जिनेतरदर्शन की भाति यह किसी पूज्य की पूज्यता का अपलाप नही करता है। पूज्य की पूज्यता को सम्मान देकर भगवान महावीर का कर्मवाद मानव जगत को साम्यावाद का वास्तविक सन्देश देता है ।
___कर्म आत्मा का गुण नही हैकुछ दार्शनिक कर्मों को आत्मा का गुण मानते है, पर भगवान महावीर कर्मो को गुण रूप से स्वीकार नहीं करते हैं । क्योकि कर्म यदि प्रात्मा के गुण मान लिए जाऐ तो वे बन्धनरूप नही हो सकते ! आत्मा के गुण ही आत्मा को वाध ले, यह सर्वथा असभव है। यदि प्रात्मा के गुण स्वय ही उसे वाधने लगे तो उसकी मुक्ति कैसे हो सकेगी ? बन्धन मूल वस्तु से भिन्न हुआ करता है । वन्धन पदा विजातीय होता है । अत कर्मो को आत्मा के गुण नही कहा जा सकता । इसके अलावा यदि कर्मो को आत्मा का गुण मान लिया जाए तो कर्मो का नाश होने पर आत्मा का नाश भी स्वीकार करना पड़ेगा। सिद्धान्त है कि गुण और गुणी सर्वथा भिन्न नही होते । गुण के नाश से गुणी का नष्ट हो जाना स्वाभाविक है । और आत्मा को प्राय: सभी दार्शनिक नित्य मानते हैं। अत. नित्य आत्मा के विनश्वर कर्म कभी गुण नही माने जा सकते है ।
कर्म शब्द का अर्थकर्म सिद्धान्त को जेन, साख्य, योग,, नैयायिक, वैशेषिक, +-दु शीलोऽपि द्विज पूज्यो, न शूद्रो विजितेन्द्रिय ।
अर्थात्- ब्राह्मण दुश्चरित्र हो, तब भी पूज्य है और शूद्र जितेन्द्रिय होने पर भी पूज्य नही है । पाराशरस्मृति ८-३२