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है । और वे भी इसकी महत्ता तथा मानवता के विकास मे असाधारण उपयोगिता को सहर्ष स्वीकार करते हैं ।
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स्याद्वाद की व्यावहारिक उपयोगिता कितनी महान है ? इस प्रश्न का समाधान सुप्रसिद्ध विद्वान काका कालेलकर के शब्दो मे सुनिए
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अहिंसा धर्म का एक उज्ज्वल रूप है- अनेकान्तवाद या स्याद्वाद । इसकी तात्त्विक, दार्शनिक और तार्किक चर्चा बहुत हो चुकी है । इस से अव किसी को दिलचस्पी नही रही है । लेकिन सांस्कृतिक क्षेत्र मे अन्तर्राष्ट्रीय राज्य में, रंग मे और गोरे, काले, पीले, लाल या गेहू वर्णी भिन्न-भिन्न वर्णों के परस्पर सम्बन्ध के बारे मे अगर हम समन्वयवाद को चलाएगे और स्याद्वाद को नया रूप देंगे तो जेन संस्कृति फिर से सजोवन और तेजस्वो बनेगी । अगर इस क्षेत्र मे जैन सम ज ने कुछ पुरुषार्थ करके दिखलाया तो विना | कहे दुनिया भर के मनीपी जैन शास्त्रो का अध्ययन करेंगे और इस नव प्रेरणा का उद्गम कहा है ।" उसे ढूढेंगे ।
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काका कालेलकर जी के शब्दो मे स्यादवाद की व्यावहारिक उपयोगिता का भली भांति परिचय प्राप्त हो जाता है । काकाकालेलकर ने इन शब्दो द्वारा जैन समाज को प्रेरणा प्रदान की है कि वह अनेकान्तवाद का देश-देशान्तरी मे प्रचार करे और इस के द्वारा विश्व की सामयिक समस्याओ को समाहित करके अनेकान्तवाद की सार्वभौमिकता प्रमाणित करने का श्रेय करने का प्रयत्न करे ।
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प्राप्त,
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