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के ये सात विकल्प ही हो सकते है, इन से अधिक नहीं। सक्षेप मे यही सप्तभगी का स्वरूप है।
अनेकान्तवाद और जैनेतर विद्वान :कहा जा चुका है कि अनेकान्तवाद को स्याद्वाद भी कहा जाता है। रयाद्वाद की आदर्श महत्ता और लोकोपयोगिता सर्वविदित है। जैन विद्वानो ने तो इस के प्रति महान श्रद्धा प्रकट को ही है किन्तु इस की उपयोगिता और उपादेयता को जैनतर विद्वानो ने भी सहर्ष स्वीकार किया है। भारतीय ज्ञानपीठ काशा से प्रकाशित "जैनशासन" के "समन्वय का मार्ग स्याद्वाद नामक लेख मे विद्वान लेखक श्री सुमेरचद दिवाकर लिखत
___ "पुरातनकाल मे जव साम्प्रदायिकता का नशा गहरा था, तव इस रयाद्वाद सिद्धान्त की विकत रूपरेखा प्रदर्शित कर किन्ही-किन्ही प्रतिष्ठित धर्माचार्यों ने इस के विरुद्ध अपना स. प्रकट किया और उस सामग्री के प्रति "वावा-वाक्य प्रमाण, का
आस्था रखने वाला आज भी सत्य के प्रकाश से अपने का वचित करता है । अानन्द की बात है कि इस युग म सा दायिकता का भूत वैज्ञानिक दप्टि के प्रकाश में उतरा, इस लिए म्याबाद की गुणगाथा बडे बडे विशेषज्ञ गाने लगे । जमन विद्वान प्रो० हर्मन जेकोवो ने लिखा है
जनधर्म के सिद्धान्त प्राचीन भारतीय विज्ञान और धार्मिक पद्धति के अभ्यासियो के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है न्याबाद में मयंमत्य विचारो का द्वार खुल जाता है।
पटिया ग्राफिस लन्दन के प्रधान पुस्तकालय