________________
(३८)
(स्थायी न रहने वाली) है तो मस्तक के फूट जाने से तुम्हारा क्या बिगडा? कहीं अनित्यवादी नित्यवादी के मस्तक के को इस लिए फोड़ देता था कि तुम तो कहते हो, आत्मा नित्य है, स्थायी रहने वाला है। जव आत्मा नित्य है, कभी नष्ट नहीं होता, तब रोने की क्या आवश्यकता है ? इस तरह दार्शनिक विचारों के मतभेद को लेकर एक दूमरा, एक दूसरे को पछाड़ता था। वह दर्शनी का युग था। जहां जिस की टक्कर हो जाती, वहीं युद्ध का श्रीगणेश हो जाता था। पण्डितो के इन भीषण धर्म-द्वन्द्वों से उस समय सर्वतोमुखी आतंक छाया हुआ था। जनता धर्मतत्त्व से ऊब चुकी थी, उसे उस मे घृणा हो गई थी। जनमानस किसी शान्ति-दूत तथा मार्गदर्शक की प्रतीक्षा कर रहा था।
अहिंसा और सत्य के अमरदूत भगवान महावीर इसी युग में अवतरित हुए थे। वे एक सफल वैद्य थे, जो आधि, व्याधि और उपाधिरूर त्रिताप से सन्तप्त संसार को शान्ति का दिव्य औषध खिलाने आए थे। भगवान ने देश के तात्कालिक रोग का ग मार अध्ययन किया और उस के मूलभूत कारण को टटोला । वह कारण था-एकान्तवाद। एकान्तवाद में किसी भी पदाथे पर भिन्न दृष्टियों से विचार नहीं किया जाता है। उसे केवल एक ही दृष्टि से देखा जाता है और उसे एक दृष्टि का इतना अधिक मोह होता है कि दूसरी इष्टि का श्रवण करना भी वहां असा होता है। इसी लिए उस में मंघर्षों की उत्सत्ति होती है। इस प्रकार भगवान ने तात्कालिक संघर्ष का मूल कारण एकान्तवाद समझा और अनेकान्तवाद के दिव्य औषध से उम का उपचार करके उसे सदा के लिए उसे शान्त किया।
अनेकान्तवाद नित्यवादी और अनित्यवादी दोनों का उचित समाधान करता है। अनेकान्तवाद दोनों को शान्त करता है। अनेका.