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अलावा, भारतवर्ष मे जूते बनाने वाली कुछ विदेशी (अब शायद स्वदेशी कम्पनियां कतल किए गए गायों और होनहार बछड़ों की लगभग ५० लाख ग्वाल प्रतिवर्ष खर्च करती है। इस हिसाब से स्पष्ट है कि भारत मे आज अगरेजी शासन से दूना गोवध हो रहा है।
मांस के लिए पशुओं का सहार:___ भारत सरकार की राष्ट्रीय आय कमेटी ने १६५८ में जो रिपोर्ट दी थी, उस के अनुसार १६५०-५१ में २२ करोड रुपयों का गो माम नैयार हुआ, मैंम का मांस करोड़ ५० लाख रुपयों का, भेड और बकरी का मांस ४४ करोड रुपयों का, सूअर का मांस ४ करोड ७५ लाख रुपयों का, मुर्गी और बतख के अण्डे १० करोड़ रुपयों के मुर्गी का मांस ८ करोड़ रुपयों का, और मछली ३६ करोड रुपयों की तैयार हुई। ये अंक केवल सरकारी कसाई खानी के हैं। शेष स्वतन्त्र या प्रच्छन्न रूप से जो गोवध होता है यदि उस के भी आंकडे प्राप्त किये जाएं तो यह सख्या और भी बढ़ जायगी। इसके इलावा, खाद्य तथा कृषि मंत्रालय ने १६५६ ई० मास बाजार की जो रिपोर्ट प्रकाशित की है। उसके अनुसार सरकारी तौर पर मांस का उत्पादन तथा प्रचार बढ़ाने के लिए सुझाव दिये गये हैं।
मांस-भक्षण के लिए प्रोत्साहन :
माम भक्षण के लिए भारत सरकार जनता को विशेष रूप से प्रोत्माहिन कर रही है । सन् १९३८ ई० में काग्रेस ने नहरू जी की अध्यक्षता मे राष्ट्रिय योजना समिति बनाई थी। इस समिति की भशुनम्न मुधार उपसमिति ने भारत के स्वतन्त्र हो जाने पर ३१ जनवरी १६४८ ई. की जो रिपोर्ट प्रकाशित की है, उस में यह