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स्त्री से, पुत्र से, सांसारिक विषयों से होता है। स्नेहराग माता, पिता भाई बन्धु से किया जाता है। अपने पक्ष का स्नेह या अपने मत का प्यार दृष्टिराग कहलाता है। अठारह पापो में राग को एक पाप स्वीकार किया गया है जब कि प्रेम जीवन का एक अध्यात्म गुण है । राग जीवनोन्नति में बाधक है, प्रेम उसमें साधक है। भगवान महावीर के प्रधान शिष्य श्री गौतम स्वामी के राग ने ही उन्हें केवल ज्ञान के प्रकाश से वश्चित कर दिया था। अत राग हेय है और प्रेम उपादेय है। अहिं सा विश्वप्रेम का ही ज्वलन्त प्रतीक है। प्रेम कहो या 'अहिंसा एक ही बात है। अहिंसा और कायरता- ..
कुछ लोग अहिंसा को कायरता समझ बैठे हैं । उन्हें यह कहने में जरा भी संकोच नहीं होता कि अहिंसा ने मानव को बुजदिली का पाठ पढ़ाया है। उनका कहना है कि व्यक्ति, परिवार, ममाज और राष्ट्र को नपु सक बनाने वाली अहिंसा है। उनके विचारों में भारत को पराधीन बनाने वाली भी अहिंसा ही है किन्तु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है । मालूम होता है कि इन लोगों ने अहिंसा को समझा ही नहीं है। अहिमा को कायरता का रूप देना एक बहुत बड़ी भूल है। क्योकि भहिंसा और कायरता का दिन रात का सा विरोष है। भारत के प्राचीन इतिहास तो यह साबित करता है, कि जब तक इस देश में अहिंसा के उपासक शासको का राज्य बना रहा, तब तक यहां की प्रजा में शौर्य और पराक्रम की तनिक भी कमी नहीं रही। उन शासकों ने अपने देश की स्वाधीनता की रक्षा के लिए शक्तिशाली शत्रुओं के माथ वीरतापूर्ण युद्ध किर और कमा भा उन्होंने कायरता से सिर नहीं मकाया। सम्राट् चन्द्रगुप्त और अशोक अहिंमा धर्म के नब से