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रही है।
अहमदाबाद के लोगों की अहिंसा के सम्बन्ध में महात्मा गांधी ने जो जिक्र किया है उसके सम्बन्ध में मुझे अधिक कुछ नहीं कहना है। जैनदर्शन का जहां तक मैने अध्ययन किया है, उसके आधार पर मैं तो इतना ही कह सकता हू कि अहमदाबाद के लोगों की अहिंसा जैनदर्शन की अहिंसा नहीं है। जैनदर्शन में ऐसी पंगु और अन्धी अहिंसा का कोई स्थान नहीं है। यह सत्य है कि जैनदर्शन चींटियों और मछलियों की रक्षा की प्रेरणा अवश्य करता है किन्तु वह चींटियों और मछलियों के साथ-साथ मानव-जीवन की रक्षाको अपेक्षाकृत अधिक महत्त्व प्रदान करता है। मानव-जीवन को जैनदर्शन ने सर्वोपरि स्थान दिया है। एकेन्द्रिय जीवन की अपेक्षा पञ्चेन्द्रिय जीवन की रक्षा सर्वप्रथम है। यही जैनत्व है, यही जैन -सस्कृति का अमर स्वर है। राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी विधवाओ की धरोहर को अजगर की तरह निगल जाने वाले लोगो को भले ही जैनी कहें किन्तु जैनदर्शन उन्हे जैन नहीं कहता। ऐसे लोगों का जीवन जैनत्व से कासो दूर है। ऐसे लोगों को जैनी नहीं कहा जा सकता। मैं तो पता है कि लोग अपने को जैनी कह कर जैनत्व को लाजिछत जाते हैं। जैनदर्शन को बदनाम करते हैं। ऐसे लोगों को चाहिए कि अपने को जैन न कहे, अपने को जैन कह कर लागा की आंखों में धन न झांके। उन्हें चाहिए कि अपने उपर जैनत्व का लेवल न रखें। निष की शाशी पर अमृत का लेबल नहीं रहना चाहिए।
प्राज अहिमा के ममाह अवध्य मना लिए जाते हैं, किन्तु
वैरविरोध का साग निरन्तर जलती रहती है। कहिए, एस हिमा-समान मानव जगत की कमी सुख शान्ति का लाभ