________________
( ५ )
नाना गतियों में भ्रमण करते हुए भव्य प्राणियों के लिये अहिसा का आधार होता है ।
अहिंसा और सत्य के अग्रदूत भगवान महावीर ने"धम्मो मंगलमुक्किड अहिसा सजमो तवो
•
ܙ
यह कह कर हिंसा को धर्म और सर्वश्रेष्ठ मंगल स्वीकार किया है । और साथ मे -
"देवा' वि तं नमसन्ति, जस्स धम्मे सवा मणो
"
T
य प्रतिपादन कर हिंसा की उच्चता, महत्ता, सफलता और लोकप्रियता को भी उन्होंने सहर्ष माना है। इसके अलावा पातञ्जल योगदर्शन मे पतञ्जलि ऋषि ने भी अहिंसा को प्रेम का परम प्रतीक अगीकार किया है। वे कहते हैं
हिंसा-प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैर त्यागः ।
(साधनापाद सूत्र ३५)
-- जब योगी अहिंसा धर्म को अपने जीवन में धारण कर लेता है और पूर्णतया उसमे उस की दृढ़ता हो जाती है, तब उसके समीपवर्ती प्राणियों का भी वैरभाव दूर हो जाता है । नकुल और सर्प मे स्वाभाविक वैर है, यह बात आबालवृद्ध प्रसिद्ध है, पर श्रमिक महापुरुष का सान्निध्य पाकर वह भी निवृत्त हो जाता है । श्रहिंसा की छाया मे नकुल और सर्प भी प्रेम के जीवित भडार बन जाते है ।
श्रहिंसा की महिमा महान है । किसी ने उसे धर्म के रूप में देखा है । कोई उसे मंगल के नाम से पुकारता है और किता ने उसे शान्ति
* मा सयम और तप यह त्रिविव धर्म है, और उत्कृष्ट मंगल है। + जिस हृदय में धर्म निवास करता है, देवता भी उसे नमस्कार करते हैं।