________________
(१२)
*Thau shall not kill. यह कह कर भगवतीअहिंसा को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। वस्तुत अहिंसा की महिमा अपरम्पार है, इसका पार नहीं पाया जा सकता। अहिंसा जैनधर्म का प्राण है
जैनधर्म का मुख्य सिद्धान्त अहिंसा है। "अहिंसा परम धर्म है" यह महावाक्य जैनधर्म का प्राण माना जाता है। जैन धर्म इसी प्राणशक्ति से जीवित है। अन्यथा जैनधर्म का अपना स्वरूप ही समाप्त हो जाता है। जैनधर्म की घोषणा है
एवं खु नाणिणो सारं, जं न हिंसइ किंचणं । अहिंसा समयं चेत्र, एयावंतं वियाणिया ॥
(सूत्रकृतांग अ०११-१० उ०१) अर्थात्-किसी भी प्राणी की हिंसा न करना ही ज्ञानी होने का सार है। अहिंसा सिद्धान्त ही सर्वश्रेष्ठ है, केवल विज्ञान इतना ही
प्रश्न हो सकता है कि अहिंसा की बात तो प्रत्येक धर्म में मिल जाती है फिर जैनधर्म की इस मे क्या विशेषता है? इस का उत्तर निमोक्त पक्तियों में पढ़िए
यह सत्य है कि दूसरे वर्षों में भी भगवती अहिंसा की महिमा पाई जाती है, परन्तु अहिंसा पर जितना बल जैनधर्म ने दिया है उनना किसी अन्य धर्म ने नहीं दिया है । जैनधर्म न अहिंसा के विषय में जितना विशद और सूक्ष्म चिन्तन, मन्थन आध्यात्मिक
"तुझ किमी जीव को नहीं मारना चाहिए । यह ईसा की १० श्रानानों में से एक पाना है।
-
-
-
-