________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 3 तथ्यों की वैधता के लिए स्पष्टिकरण की आवश्यकता होती है। मुख्यतया पूर्वी राष्ट्रकूटों तथा आगुप्तायिक के वंशज देज महाराज महाराष्ट्र तथा कर्नाटक के सीमा भागों पर शासन करते थे, जो कोंकण से ज्यादा दूर नहीं था। गोकाक से प्राप्त कांस्य पत्रों के अनुसार देज महाराज ने जमखंडी के जागीरदार सेंद्रक के इंद्रनंदी को अरहंत, जो सर्वज्ञ तथा पूजनीय थे, की प्रार्थना के लिए कश्मांडी विषय के जालारा गाँव में लगभग 50 निवर्तन की कृषि जमीन दान में दी थी। ये जंबुखंडी के गण के आर्यनंदी थे जो जैन संघ के मुनि थे और मूल संघ से जुड़े थे। जंबुखंड आधुनिक जमखंडी है, जो कि बागलकोट जिले का प्रमुख तालुका है। यह दान ई.पू. 532-33 में दिया गया था। ऐसा माना जाता है कि छठी सदी के मध्य में बादामी चालुक्यों ने पहले दक्षिण के राष्ट्रकूटों का दमन किया और पराजित राष्ट्रकूट ऐलापुर क्षेत्र की ओर स्थानांतरित हुए। फिर अपने आश्रयस्थल का विस्तार करते हुए चालुक्यों के संरक्षण में आ गए। आठवीं सदी के मध्य में महान राजवंश के रूप में राष्ट्रकूटों ने 200 वर्षों तक चालुक्यों से भी बढकर अपना प्रभुत्व जताया। यह उनकी दूसरी सत्ता की दूसरी पारी थी। जैसा कि कहा जाता है इतिहास अपने को दोहराता है, चालुक्यों की एक शाखा से राष्ट्रकूटों का भारी दमन हुआ। चालुक्यों की इसी शाखा ने अगले 200 वर्षों तक शासन करने के लिए अपनी दूसरी पारी पहली पारी की अपेक्षा अधिक बुद्धिमत्ता से खेली थी। एक महान राजवंश के प्रथम निर्माता के रूप में स्वयं को सिद्ध करने के लिए वातापी चालुक्यों ने परिस्थितियों का अच्छा दोहन किया। उनके उद्भव और विकास के साथ एक नए अध्याय का शुभारंभ हुआ। पुलकेशी प्रथम के दादा, जयसिंह ने राष्ट्रकूटों के प्रमुख राजा इंद्र को परास्त किया और फिर जयसिंह के प्रपौत्र पुलकेशी प्रथम ने अपना अभियान शुरु किया। प्रारंभ में जयसिंह ने कदंबों के अधीन रहकर एक छोटे किंतु प्रमुख व्यक्ति के रूप में अपने राजनीतिक व्यक्तित्व की शुरूवात की। किंतु एकदम अचानक उसने पूर्वी राष्ट्रकूटों के राजा मान्यपुर के अभिमन्यु के प्रति अपनी निष्ठा जतायी। चालुक्यों के शासन काल में उत्कीर्णित मांडलिकों की नामसूची में जयसिंह का नाम भी दर्ज है। वी.वी. मिरशी, एम.डी दीक्षित, डी.सि. सरकार और एच. एस. थोसर के साथ विचार विमर्श के उपरांत मानपुर के राष्ट्रकूटों की वंशावली पुनः रची गयी। वह वंशवृक्ष निम्नलिखित है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org