________________ 130 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य अच्छे से पॉलिश की गई है किंतु बहुत अधिक भग्न है। किंतु दिलचस्प बात यह है कि एक दूसरे के ऊपर ध्यान मुद्रा में रखे हाथ अभी भी सुरक्षित है। दाहिनी हथेली पर कमल का फूल दिखाया गया है। मात्र मुडे हुए पैर भग्न नहीं हुए हैं। लंबा मुख तथा अर्धनिमिलित नेत्र यही दर्शाते हैं कि जिन गहन तपस्या में लीन है। भौंहे, सिर के धुंघराले बाल, पतली कमर, विशाल छाती आदि बहुत ही करीने से दर्शाए गए हैं। यह प्रतिमा विद्यमान जिन मंदिरों के मूलनायक की रही होगी। उक्त प्रतिमा वातापी चालुक्यों के काल में बनवायी गई होगी। ___ कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित जिन. की दूसरी प्रतिमा (56 सें. मी. लंबी तथा 42 सें मी. चौडी) सिर रहित है और उसके अवशेष तथा भग्न सिर नहीं है। सिर के अलावा सिंहासन से युक्त प्रतिमा सुरक्षित है जो महावीर को पहचान देती है। महावीर के साथ नीचे चामरधारी हैं जो अक्सर जिनशासनदेवता या यक्ष तथा यक्षी को समर्पित होते हैं। शैलीगत तौर पर यह प्रतिमा राष्ट्रकूटों के काल लगभग आठवीं सदी की है। ___ भालकी से प्राप्त अंबिका की तीसरी प्रतिमा, जिसका मुख थोडा सा दाहिने ओर झुका है, एक अद्वितीय प्रतिमा है जिसे एक अच्छे तथा विशेष उपचार की आवश्यकता है। इस प्रतिमा का सबसे बडा लक्षण उसका वैशिष्ट्यपूर्ण तथा दुर्लभ होना है। इसके शिल्पगत लक्षणों पर विचार करना जरूरी है। दो हाथोंवाली चार फूट लंबी तथा दो फूट चौडी अंबिका की हँसती हुई प्रतिमा की बगल में दो परिचारक हैं, जो मकरपट्टी पर विराजमान हैं, और अंबिका भद्र पीठ पर विराजमान हैं। उसके दाहिने हाथ में आम्रखंबी है और बायें हाथ में फल है। उसका पुत्र शुभांकर उसकी बायीं और नग्नावस्था में है तो दाहिनि ओर प्रभांकर सिंह पर सवार है, जिसे स्तम्भाधार के कोने में दर्शाया गया है। सिंह पर सवार अंबिका को जलती आँखों तथा बाहर लटकती जीभ में दिखाया गया है। इस प्रकार अंबिका, रचनात्मक तथा पारंपरिक लिखित आदेश के साथ सामंजस्य करती है / (infra) ___ “आसनस्थ जिन की लघु शिल्पाकृति अत्यंत नाजुक तथा करीने से सजाए हुए कर्नाड मुकुट के मध्य प्रतिष्ठापित की गई है। अंबिका कंठहार, स्तनहार या सुवर्ण वैकक्षक, वक्षों के मध्य में मुक्ताहार, गले में मंगलमाला, रत्नजडित मेखला, बाजुबंद, कर्णकुंडल, नुपूर, कालकडग, अंगुठियाँ, चुडियाँ, आदि रत्नोंवाले आभुषणों से सुशोभित है। पुष्ट वक्ष, पतली कमर देवता की भव्यता को और अधिक बढाते हैं। उसका लंबे पवित्र मुख पर आनंदमयता छायी है। उसकी लंबी तथा सुंदर नाक टूटी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org