Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 216
________________ 172 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य चौकानेवाली बात यह है कि ये महत्वपूर्ण महानगर तबतक राजनीतिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्रबिदु बने रहे हैं जबतक कि कल्याण के चालुक्य से अलग हो गए। इस प्रकार बादामी के शासकों ने इन केंद्र स्थानों को चुना जो सगोत्र राजाओं का वंश खतम होने तक केंद्र में बने रहे। आडूर के अभिलेख अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अभिलेख आठवीं सदी में प्रचलित प्राचीन कन्नड का नमूना पेश करते हैं। इत्तोर सलिप्पोर, किडिप्पोर आदि क्रियाएँ ध्यान देने लायक हैं। अवर्ते धर्म तथा अवर्दइ पापं. गुरोर, गुराव आदि परसर्ग वसुदेव तथा प्रभाचंद्र परवर्ती पुरालेख के गौरव के विभिन्न रूप हैं। (Karnatak Inscriptions, Vol. 1. No. 3. p. 5. Adur Inscriptions). विद्वानों की एक प्रवृत्ति थी कि वे व्यक्ति तथा संस्थानों के नामों का संस्कृत रूपांतरण किया करते थे। जैसे विज्जिक्का अथवा विजयभ रिका, विजयक्का इस नाम का संस्कृत रूपांतरण है। भारतीय या देसी भाषा में उपयुक्त नामों तथा स्थानों के नामों का संस्कृत रूपांतरण करने की इस प्रवृत्ति के कारण कवयित्री विजयक्का विज्जिक्का नाम से अभिलेखों में जानी गईं। मंगलअरस (मंगळ राजा) का संस्कृत नाम मंगलेश का अक्सर प्रयोग होता नज़र आता है। किसुवोळाल तथा पुलिगेरे का संस्कृत नाम भी रक्तपुर तथा व्याघ्रपुरा है। ___अण्णिगेरे के बनशंकरी मंदिर के सामने वाले के स्तम्भ पर बने पुरालेख में जेबुलगिरि के गामुंडा कलियम्मा द्वारा बनाए गए चेदिया जैन मंदिर का स्मरण किया गया है और यह पुरालेख राजा कीर्तिवर्म द्वितीय के शासनकाल का है जो उसके शासनकाल के छ: साल बाद का है। (751) राजा कीर्तिवर्म के सम्मान में कोंडीशुरल कुप्प के द्वारा बनाए गए गोसास शिल्प बनाने का उल्लेख भी पुरालेखों में किया गया है। दिशापालों द्वारा खुदवाए गए पुरालेखों की भाषा प्राचीन कन्नड भाषा के उदाहरण प्रस्तुत करती है जैसे, आरनेया, निरिसिदा, लिंगवाचक प्रत्यय लंबे हुए जैसे आ। इसी प्रकार, माडिसिदान का प्रयोग प्राचीन नमूना है। बनवासी कदंबों के शासनकाल के दौरान प्राकृत भाषा ने, साहित्य ही नहीं, संस्कृत के पर्याय के रूप में राजभाषा का स्थान पाया। कदंबों के उत्तराधिकारी वातापी चालुक्यों ने प्राकृत भाषा का तिरस्कार किया और उसे दूसरा स्थान भी नहीं दिया। किंतु चालुक्यों के उत्तराधिकारियों के काल में प्राकृत साहित्य फूला फला। अतः भाषागत उतार-चढाव पर विचार करना भी आवश्यक है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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