________________ 174 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य आडूर का शिलालेख महावीर के आह्वान से प्रारंभ होता है। यह बात ध्यान देने की है कि पुलिगेरे तथा ऐहोळे के पुरालेख का प्रारंभ जिन की वंदना से होता है किंतु उसमें जिन का नामोल्लेख नहीं है। जयति अनेकथा विश्वं विवुरुणवननअंशुमान-इव। श्री वर्धमान-देवो नित्यं पद्म प्रबोधनः॥ __ (KI. Vol. I. No. 3. 75. Adur) वर्धमान की विजय हो, जिसने इस विश्व को बहुविध रूप में दर्शाया, जिसने रोज़ सूर्य के समान, कमल को भी खिला दिया। जयति जगदेक भानुः स्याद्वाद गभस्ति दीपितं येन परसमय तमिर पटाल साक्षातकृत सकल भुवनेना वह विजयी है। वही तो एक मात्र इस जगत का सूर्य है जिससे स्यादवाद की किरनें प्रकाशमान हो उठीं, जिससे सकल जगत को विरोधियों के अंधेरे से मुक्त किया। जितम भगवता श्रीमद्धर्म तीर्थ विधायिना वर्धमानेन संप्राप्त सिद्धि सौख्यांअमृतात्मना लोकालोक द्वयाधारं वस्तु स्थास्नुचरिश्नुवा संविधालोक शक्तिः स्वाव्याधुनते यस्य केवला॥ (EC. Vol. II (R) No. 1. C. 600 D. 7. Shravanbelgola) दिव्य पवित्र मत की स्थापना करने वाले वर्धमान ने विजय प्राप्त की और यह मत आनंदामृत से समाविष्ट था। और यह आनंदामृत उनको परिपूर्णता से प्राप्त हुआ और उनकी यह सर्वज्ञता तो त्रैलोक्य से समावेशित है। * जैन पुरालेखों के प्रार्थना श्लोक अप्रतिम काव्य रचना है तथा जैन मंत्रों को समझने के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। कुछ लोगों ने इन संस्कृत पदों को मध्यकाल में सुना था जो प्रार्थना पदों के रूप में लोकप्रिय रहे है। मंत्रों के समान आध्यात्मिक महत्व के पद जैन भक्तिस्थल के कृपा तथा ज्ञान की निधि है। यह ज्ञाननिधियाँ जनता तक पहुँचाने के लिए रची गयी थी। इन प्रार्थनाओं की विषय वस्तु भक्ति और करुणा है। जब कभी लोग रीतिबद्ध तरीके से प्रार्थना के लिए इक होते हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org