Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 232
________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 187 पुरालेख के साथ साथ 751-52 के आसपास का सबसे प्राचीन रिकार्ड में चेदिया ? जैन मंदिर के निर्माण का उल्लेख है, जिसे जेबुलगिरि के प्रमुख व्यक्ति कलियम्मा द्वारा निर्माण किया गया था, जाहिर है कि वह अण्णिगेरे शहर का एक भाग था। अभिलेखों में राजा किर्तिवर्म सत्याश्रय के छठे शासनकाल का उल्लेख है। जिस स्तंभ पर यह पुरालेख खुदवाया गया है आज वह बनशंकरी मंदिर के सामने है, जैन मंदिर से संबंधित है। छोटे स्तम्भ के तीन चेहरे पर जो पुरालेख खुदवाए गए हैं, आगे कोंडुशुलर कुष्प (उपनाम कीर्तिवर्म गोसासी) द्वारा बनवाए गए मूर्ति के सामने स्थापित किया गया है जोकि जाहिर है कलियम्मा के गुरु थे। __पल्लव राजा महेन्द्रवर्मन प्रथम (600-30) युद्ध और शांति में एक जैसे महान थे, शैवमत में जाने से पूर्व जैन थे, बादामी जैन गुफा से प्रेरित थे, उन्होंने मंडगपट्ट में ऐसे ही बनवाने का प्रयोग किया और सित्तनवाशल में जैन गुफा बनाने की शुरुवात की जो बाद में पंचों द्वारा अलंकृत की गई। ऐहोळे गुफाओं की वास्तुकला पल्लवों, पंधों तमिलनाडु के चोळों तथा शाही राष्ट्रकूटों के लिए योग्य मॉडल साबित हुई। . दक्षिण में सातवीं तथा नौवीं सदी के मध्य चट्टानों में बनी गुफाएँ तथा विशाल पत्थर कुशल शिल्पकारों के लक्ष्य थे और ये शिल्पकार ऊपर उल्लेखित शाही साम्राज्यों के आश्रित थे। व्युत्पत्ति चालुक्यों के नाम में विविधता है, जैसे चळकि, चळुकि, चाळिक्य, चालुक्य, तथा अळुक्य जिसमें अंतिम नाम में प्रथम व्यंजन गायब है। चालुक्यों का अर्थ तथा व्यत्पत्ति रहस्यपूर्ण ही बनी रही। इतिहासकारों ने इस समस्या के समाधान के लिए कई प्रकार के सुझाव दिए हैं और विविध व्युत्पतियाँ भी दी हैं। व्युत्पत्ति की दुर्दशा इसी धूरी पर घूमति है कि चालुक्य. चलूक्य यह शब्द किसी द्रविड मूल के व्यक्ति, वर्ग, जाति, वस्तु का है। इ.उ. की तीसरी सदी के नागार्जुनकोंड के पुरालेख में खंदचलिकि नाम का व्यक्ति आता है किंतु उसका चालुक्यों के साथ किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं है। तथापि, इस नाम पर विचार होना भी आवश्यक है। अलौकिक मूल, पौराणिक कहानियाँ तथा किंवदतियाँ केवल अतिपवित्र मूल के साथ शाही घरानों का निवेश करने के लिए गढी गई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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