Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 234
________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 189 इसीप्रकार के समान्य लोगों के कुछ समान नाम जैसे, पोलुकेशि, पोलेअब्बे, पोलेअम्मास पोलेयण्ण तथा होलेयम्मा आदि पूर्वि मध्यकाल के पुरालेख में मिलते राजा महाराजाओं के व्यक्तिगत नामों पर विचार करते हुए इस पुस्तक के लेखक ने पोलेकेशि शब्द का ही प्रयोग किया है, जो कि रविकीर्ति तथा नागवर्म तथा शक 827 के पुरालेख में अपनाया गया था। इस पुस्तक के लेखक ने अपने पूर्व के विद्वानों से सर्वसम्मत होते हुए पहेली को सुलझाने के लिए प्रामाणिक प्रयास किया है और अपने प्रबंध को भाषावैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत किया है। चालुक्य यह शब्द चलुकि तथा सलुकि कन्नड संज्ञा का संस्कृत रूपांतरण है जिसके भिन्न रूप है, चलकि या सलकि, जिसका अर्थ है, लोहदंड या छोटी कुदालि ?एक कृषि साधन या औजार। जाहिर है कि चालुक्य, शब्द कहीं भी संस्कृत से संबंधित नहीं दिखता। इस राजवंश के संस्थापक को इस औजार पर नामित किया गया होगा और उसके साथ आदरसूचक अप्पा प्रत्यय जोड दिया गया होगा। व्यक्तिगत नाम जैसे सलेकेप्पा, गुद्लेप्पा आदि कन्नड भाषी लोगों में आम है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो प्रारंभ में चालुक्य कृषक थे बाद में धीरे धीरे वे शासक परिवार के ऊँचे स्तर पर पहुँच गए। अतः वे अप्रवासी नहीं थे। इसके विपरित वे कर्नाटक के निवासी तथा भारतीय ही थे। व्यक्तिगत नाम जैसे बिट्टरस, पूगवर्म, पोलकिशि तथा उपाधियाँ जैसे, नोडुत्ता गेल्वोम (देखते ही जीत लेना) प्रियगळ्ळा (प्रिय का) आदि उनका कन्नड भाषा तथा कर्नाटक से संबंध निश्चित करते हैं। पुलिगेरे स्थान का नाम सस्कृत रूपांतरण पुलिकारा (नगर) के रूप में किया गया। उदाहरण स्वरूप, पोलकेशिन का संस्कृत रूप है पुलिकेशिन। पोला- होला , केसिन (कृषक) इन दो शब्दों को मिलाकर पोलकेसिन शब्द बना जिसका अर्थ है कृषक, किसान। पुरालेखों का सूक्ष्मता से निरीक्षण करने पर यह बात सामने आती है कि पुलिकेशिन यह शब्द संस्कृत अभिलेखों में प्रारंभिक उक्ति के रूप में आता है और पोलकेशिन कन्नड अभिलेखों में प्रवेश पा लेता है। इसीप्रकार, मेगुटि मेगुडी का मिथ्यानाम है, लेखक मेगुडी शब्द का ही निरंतर प्रयोग करता आ रहा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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