Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 228
________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 183 है। जैन परंपरा की बौद्धिक तथा सांसारिक भव्यता तथा दार्शनिक समद्धी केवल परिश्रमी अनुशासप्रिय मुनियों तथा भक्त भक्तिनों तक ही सीमित नहीं थी। इसका प्रभाव जो अनुशासन की अन्य शाखाओं पर पडा उस पर विचार होना आवश्यक है। विशेषतः कला तथा स्थापत्यकला का क्षेत्र सौंदर्य शिल्प की कौशल पूर्णता के साथ काफी फूला फला और जैन स्मारकों की अत्यंत अमूल्य निधि इसी युग से आयी। इस युग में कुछ विशाल स्मारक जो देवताओं तथा अन्य प्रशंसनीय देवताओं के लिए बनवाए गए थे वे मूर्तिकला की बारिकियों का तोशाखाना (खजाना) है। जैन विद्वता को उच्च शिखर पर पहुँचाने के लिए साहित्य का भी कम योगदान नहीं है। यहाँ तक कि एक विहंगम दृष्टि ही जैन स्थापत्य कला के परिदृश्य की कहानी बयान करने में पर्याप्त है। इस पुस्तक में उसकी नज़ाकत तथा चुने हुए चित्र प्रस्तुत किए गए हैं। . ऐहोळे का मेगुडी मंदिर जिसे पुलकेशि के विद्वान कवि ने सी ई 634-35 में बनवाया था वातापी चालुक्यों का सबसे प्राचीन मंदिर है और अगर उसके शासनकाल में बादामी तथा ऐहोळे में कुछ मंदिर में बनवाए भी गए हो या निश्चित ही बनवाए गए होंगे पर हमारे पास इसका कोई पुरालेखिय साक्ष्य नहीं है जिससे हम उनकी पहचान कर सके। बादामी, पट्टदकल, ऐहोळे तथा आलमपुर जैसे महत्वपूर्ण केंद्रों के सभी चालुक्य मंदिर की राष्ट्रकूटों तथा कल्याण चालुक्यों के शासनकाल में या तो मरम्मत की गई या तो उसमें कुछ जोडकर उसका नवीनिकरण किया गया, कभी उसके मूल का अनुकरण कर या फिर आधुनिक प्रवृत्ति के अनुसार उसे बनवाया गया, इसप्रकार मूल संरचना में कई तरह के बदलाव आए। (Ramesh K.V: 1984:-97). मेगुडी, लाडखन, दुर्गा, हुच्चिमल्लिगुडी, ज्योतिर्लिंग तथा गळगनाथ मसूह के मंदिर पुरालेखों में रामलिंगेश्वर तथा चरंतिमठ मंदिर के पुरालेख इस बात का संकेत करते हैं कि मंदिरों के पुरालेखों में खुदवाने की पद्धति इस युग की परंपरा बन गई। एकं दुर्लभ संयोग की तरह पुलकेशी द्वितीय की प्राचीन तथा प्रसिद्ध पुरालेख पराशक्ति रविकिर्ति द्वारा रचा गया था जो चालुक्यों के इतिहास के लिए एक उपयोगी आधार बना जो मेगुडी के जिनालय में पाया जाता है। ___ अंबिका एक महत्वपूर्ण शासनदेवि जो खगोलिय निवास में उसके सिंहासन पर अपने बच्चों क साथ बैठी है, जो कि दक्षिण की सबसे प्राचीन देवी है। राज्य के सुदूर भागों में शैलिगत घुसपैठ की प्रक्रिया में प्रादेशिक विविधताओं ने अपनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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