________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 181 जैन मुनि अपने सद्गुणों तथा विद्वत्ता के लिए जाने जाते है और उन्होंने जैन संघ के खिलने के लिए मधुमक्खी की तरह काम किया। शाही परिवार, शिष्टवर्ग तथा सामान्य लोगों पर उनका प्रभाव उल्लेखनीय है। अबतक जैनधर्म दृढता से स्थापित हो गया था। आदिकदंबों ने उसे अपना पूरा सहयोग दिया। इस वाद ने स्पष्टता से चैत्यवासी, चरित्र तथा रंग को ले लिया। बनवासियों कदंबों ने तो जैन मत में अपने विश्वास की उद्घोषणा की थी। यसमिन जिनेंद्रपूजा प्रवर्तते तत्र तत्र देश परिवृद्धिहि। नगराणां निर्भयता तद्देश स्वामिना चोर्जा ( नमो नमः) . (CKI:No. 24, C, 5 = ई.स, Halasi Plates) जहाँ जहाँ जिनेंद्र की पूजा होती रहेगी देश में समृद्धी होती रहेगी। नगर भयमुक्त होंगे, और उन देशों के स्वामी बल अर्जित करते रहेंगे। चालुक्यों के शासनकाल के दौरान, जैनधर्म ने प्रभुत्व प्राप्त किया और शहर सकेंद्रण से ग्रामों तक दृढता से फैल गया। इस काल की कई जैन तथा उससे संबंधित मंदिरों की प्रतिमाएँ विविध जैन मंदिरों में देखी गई। प्रगतिशील एकात्मता द्वारा कला तथा शिल्पकला को जो आकार तथा रूप दिया गया वह उनके पूर्ववर्तियों की उपलब्धियाँ हैं। ... भारत के सांस्कृतिक वैभव में जैन शिल्पकला तथा इतिहास का योगदान विचारणीय है साथ ही उसका क्रमानुसार अध्ययन करना भी ज़रूरी है। हाथों द्वारा बनाए गए शिल्प तथा पेंटिंग आदि ने जिन तथा अन्य प्रशंसनीय देवताओं के लिए बनाए गए विशाल स्मारकों की शोभा बढाई जैन कला तथा साहित्य ने बादामी चालुक्यों के काल में एक ठोस आकार ग्रहण किया। उसका क्षेत्र विशाल, उसका सौंदर्य आकर्षणीय तथा उसका अध्ययन ज्ञानवर्धक है। अगर संक्षेप में कहना हो तो यह काल जैन वास्तुकला का मुक्कमल खजाना है। प्रबुद्ध चालुक्यों के शासन काल के दौरान वास्तुकलागत गतिशीलता अपने उच्च शिखर पर थी। पुरालेखों में प्रसंगानुसार सभी मतों तथा संप्रदायों के कई मंदिरों के निर्माण का उल्लेख किया गया है। कुछ पुरालेख तो एक कदम आगे जाकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org