Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 227
________________ 182 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि शाही घरानों के सदस्य धर्मनिरपेक्ष थे। कला या वास्तुकला के क्षेत्र में उनकी श्रेष्ठता उल्लेखनीय है। साम्राज्य के केंद्रीय शहर ऐहोळे, बादामी तथा किसुवोळाल में बने च ानों तथा पथरिले प्रार्थनागृह धर्म तथा वास्तुकला के प्रति अपना समर्पण ही प्रमाणित करते हैं। ___ वास्तव में एलोरा का च ान में बना मंदिर, जो कि राष्ट्रकूटों का विशाल स्मारक है, चालुक्यों के बादामी में बने मंदिर की प्रेरणा से ही बना है। यह स्थान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कारण यहाँ तीन भारतीय संप्रदाय ब्राह्मण, बौद्ध तथा निग्रंथों का संगम हुआ। ऐहोळे जैन गुफा, मीन बसदी दोनों एकांत स्थानों पर स्थित हैं। प्राचीन स्मारक होने के कारण इन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। यह एक अद्भुत उत्खनन है, जाहिर है कि अनंत पूर्वविवेक और धैर्य के साथ, एक ठोस मध्यम-बड़ी चट्टान, सुनियोजित और कुशलता से गढ़े एक मास्टर शिल्पकार की कृति है। चट्टानों में बने मंदिर जिनके केंद्र में एक बड़ा सा दालान है जहाँ दरवाजे के मार्ग से पहुँचा जा सकता है, जिसके आगे चट्टान में एक कोठरी है। उसकी शैली एक साथ मौलिक तथा जीवंत है। चट्टानगत वास्तुकला परिपक्व है और जिसे नवीनता से चिह्नित किया गया है और अगर कोई उसके विकास के कोई पडाव है भी तो उनको अनुरेखित नहीं किया जा सकता है। संभव है कि इस एक मंजिला चट्टान में बने मंदिर ने दो मंजिला खंडगिरि तथा उदयगिरी की गुफा से प्रेरणा ली हो। असाधारणता का ज्वलंत और उत्साह का उदाहरण मानी जानेवाली ऐहोळे चट्टान की मूर्तिकला की पराकाष्ठा एलोरा में दिखाई देती है, जहाँ महान शिल्पकारों का तकनीकी कौशल तथा कलात्मक उत्कृष्टता अच्छी तरह से देखी जा सकती चार गुफाओं की श्रृखंला में (एक से चार नंबर) अंतिम तथा चौथी गुफा जो बादामी पर्वतपृष्ठ के उत्तरी सिरे पर है, वह पूर्वीमध्यकाल की जैन शिल्पकला तथा स्थापत्यकला के अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर विशेष रूप से दिंगबर अन्वय के हैं जो छठी सदी के अंतिम दो दशकों के हो सकते हैं।(एलोरा की जैन गुफाओं के दो सौ वर्ष पूर्व।) गुणवत्ता तथा संख्या की दृष्टि से इस युग की कला तथा शिल्पकला को एकमात्र जैनों का योगदान एकल तथा पर्याप्त है। संक्षेप में, तत्कालीन जैन आकाशिय चित्रमाला की चमक दमक हमेशा प्रेरित करती है, हमें सासंरिकता से परे ले जाती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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