________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 171 कन्नड का केंद्रीयस्थान कर्नाटक के पुरे नक्शे को नापने के बाद अपूर्व तथा असाधारण 'कविराजमार्ग' के लेखक श्रीविजय (865) ने फिर एक बार यह निश्चित किया कि दक्षिण में कावेरी नदी तथा उत्तर में गोदावरी नदी के मध्य जो विशाल प्रांत है वह कन्नडनाडु अर्थात कर्नाटक है और इस प्रांत के चार प्रमुख नगरों के मध्य का प्रदेश कन्नड भाषा का केंद्रीय स्थान था। जहाँ राज शासन द्वारा पारित कन्नड भाषा बोली जाती थी। स्वाभाविकतः क्षेत्र की भाषा विद्वानों की भाषा बन गई। दिलचस्प बात यह है कि दक्षिण के गंग तथा राष्ट्रकूट विद्वान तथा उत्तर के परवर्ती चालुक्य कवि सजातिय साहित्यिक मुहावरों का प्रयोग करतें थे। बाद में होयसल युग के लेखकों ने भी इसी मानक भाषा का प्रयोग किया। इस प्रकार पुलिगेरे की भाषा या फिर संक्षेप में कहना हो तो केंद्रीय स्थान की कन्नड भाषा जिसमें कन्नड की सुगंध मिलती, राजनीतिक परिवर्तन के बावजूद पाँच सौ वर्षों तक साहित्यिक जगत में इस का प्रभाव बना रहा। श्रीविजय (865) ने किसुवोळाल , पुलिगेरे, प्रसिद्ध महानगर कोपण-नगर तथा बहुप्रशंसित ओनकुंडा के मध्य का प्रांत राष्ट्रकुट साम्राज्य का उत्तम तथा केंद्र भाग माना गया है, जहाँ कन्नड की सुगंध खिलती गई। यह महत्वपूर्ण नगर ऐहोळे, बादामी, आडूर, परलूर तथा हुल्ली से बहुत दूर नहीं थे। कन्नड भाषा जैन कवि तथा दार्शनिकों के कारण साहित्य की अभिजात्य भाषा के रूप में फूली फली, जो इन महानगर के साहित्यिक तथा सांस्कृतिक से जुडे थे। ये प्रमुख स्थान जैन सांस्कृतिक केंद्र थे। पुलिगेरे, पुलिगेरे के प्रभाग 300 (ग्रामाणां त्रिशतैरखता) की राजधानी थी। इस स्थान पर विद्यमान आधे से अधिक पुरालेख जैनधर्म से संबंधित थे तथा राजघरानों द्वारा जैन मंदिरों को दिए गए उदार दान के बारे में दिल खोलकर प्रशंसा करते हैं। बेलवोल 3000 की राजधानी अण्णिगेरे भी उतनी ही प्रचीन है और दोनों पाँच सौ साल पुरानी है और इन दोनो शहरों की कहानी छठी सदी से शुरु होती है। इस क्षेत्र की उपजाउ जमीन का कुछ ऐसा वैशिष्ट्य है कि जिससे वह मानककन्नड भाषा का केंद्र प्रदेश बना जिसका चुनाव श्रीविजय, पम्प तथा रन्न आदि महाकवियों ने किया था। __ दुर्लभ संयोग के समान, श्रीविजय (865) दो सौ सालों के बाद भी इन महानगरों के बारे में यही कहता है कि ये महानगर उस वक्त के राष्ट्रकूटों का केंद्रबिंदु था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org