________________ 132 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य की प्रशंसा करनी चाहिए। भले ही थोडी किंतु काफी भग्न तथा विरुपित है, किंतु फिर भी इस प्रतिमा के उत्कृष्ट सौंदर्य का कोई सानी नहीं है। जो सोने में तोलने योग्य है। / ऐहोळे की जैन गुफाओं की छत पर जो शिल्पगत रचना है वह प्राचीन आयागपट (भक्तिफलक) का ही विस्तार है। यह शिलापट मथुरा के कंकलि टीले से लाया गया जो कि कुशाणों के युग का है जिस पर मच्छ तथा स्वस्तिक के मंगल चिह्न भी हैं। उत्तर, पूर्व, तथा दक्षिण भारत में हमेशा पार्श्व को सात फनों वाले सर्पछत्र में दिखाया गया है। दक्षिण भारत में, विशेषकर कर्नाटक तथा तमिलनाडु में पार्श्व की शिल्पाकृतियाँ तथा स्वतंत्र प्रतिमाएँ पाँच फनों वाले छत्र में दिखाई पडती हैं। * श्रवण बेलगोल के भंडार बसदी में प्रतिष्ठापित 24वें तीर्थंकरों की पंक्ति में सुपार्श्वनाथ को स्वस्त्रिक तथा पाँच फनों वाले छत्र में दर्शाया गया है। * गुंडडनापुर के उत्खनन में पायी, छठी सदी के उत्तरार्ध की ऋषभ की प्रतिमा - एक श्रेष्ठ एवं अद्वितीय प्रतिमा है, जिसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org