________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य, | 165 विजय भट्टारिका ने दरबारी नर्तक परिवार के घर जन्म लिया था और अपनी शिक्षा संस्कृत में प्राप्त की थी और उसने पाच अंको वाला एक ऐतिहासिक नाटक कौमुदी महोत्सव संस्कृत में लिखा था। राजशेखर ने अपने काव्यशास्त्र में लिखा है कि विजया भट्टारिका की तरह वैदर्भी शैली में इतनी सुंदरता से काव्य रचना करने वाला कालिदास के बाद और कोई नहीं। वस्तुतः उसने कर्नाट सरस्वति की उपाधि अर्जित की थी। ____ महाराष्ट्र के सावंतवाडी प्रांत के नेरुर गाँव के पुरालेख से यह ज्ञात होता है कि विजय भट्टारिका उस प्रदेश का प्रशासन देखा करती थी। नर्तकियों की जाति की कई महत्वपूर्ण महिलाओं ने प्रार्थना घरों के लिए उदारता से दान किया था। सुंदर तथा आकर्षक विनापोटि राज नर्तकी ने प्राणवल्लभ का उच्च स्थान प्राप्त कर लिया था। वह, विजयादित्य सत्याश्रय श्री पृथ्वी वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर भट्टारक की प्रेमिका थी। उसे हर धार्मिक संस्कार में भाग लेने का सम्मान प्राप्त था जो किसी विवाहित स्त्री को प्राप्त होता है। अतः यह उल्लेखनीय बात है कि तत्कालीन पुरालेखों में उसका उल्लेख विनापोटिगळ के नाम से किया गया है। उक्त नाम में गळ यह आदरसूचक बहुवचन रूप है जो उसके उच्च सामाजिक स्तर का सूचक है। वह अपने समय की अत्यंत अमीर अंतःपुर बाला थी जिसने मुकुटेश्वर मंदिर के लिए 800 मत्तर भूमि दान में दी थी जो साम्राज्य के पुरालेख में सबसे अधिक दान के रूप में उल्लेखित है, उसने हिरण्यगर्भ, पादुका तथा धवल * छत्र का दान दिया था। बिजेश्वर की चलब्बे तथा बादी पोद्दी जो कि तत्कालीन प्रेयसी थी तथा लोक हितैषी भी थी का भी उल्लेख है जिन्होंने उदारता पूर्वक दान दिया था। __दरबारियों, शिक्षितों तथा उच्चवर्ग की भाषा संस्कृत थी। जिसे राजमहल के भीतर तथा बाहर अधिक पसंद किया जाता जाता था। जिन्होंने पुरालेखों को खुदवाया तथा लिखा था, वे चारण उभय भाषा विशारद (संस्कृत तथा कन्नड) थे। रामायण, अर्थशास्त्र तथा कालिदास के रघुवंश में प्रयुक्त शब्द तथा उक्तियाँ महाकूट के स्तम्भ शासन में प्रवेश कर गए थे। पुरालेखों की गद्य शैली हमें बाण के उपन्यास कादंबरी की याद दिलाती है। त्रिपदी छंद में लिखे गए पुरालेखों में कप्पे अरभट्ट की अभूतपूर्व वीरता तथा सदगुणों का वर्णन एकवचन तथा देसी शैली में है। राजा मंगलेश्वर का महाकूट स्तम्भ ताम्रपत्र की रचना संस्कृत में की गई थी जो कि रविकिर्ति की होनी चाहिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org