Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 167 किंतु उसका निर्धारण करने के लिए अभी भी शोध की आवश्यकता है। लेखकों के कुछ नाम जो कवि तथा लेखक थे उनका उल्लेख कवि-राजमार्ग में किया गया है वे इसी काल के थे। श्रीविजय, एक महान लेखक, जो कि बादामी, पट्टदकल्ल तथा पुलिगेरे के प्रदेश का था, और ये प्रदेश इस साम्राज्य के महत्वपूर्ण शहर थे। तुलनात्मक दृष्टि से संस्कृत के पुरालेख संख्या तथा गुणवत्ता में अधिक उच्च है किंतु अधिकतर वे कन्नड लिपि में ही लिखे गए हैं। गंगों की तरह कई चालुक्यों के ताम्रपत्र ताम्रपत्र के हैं। शिलालेखों में आलमपुरी पुरालेख सिद्धमात्रिक लिपि में है और राजा विनयादित्य के अभिलेख नागरी लिपि में। तथापि शासकों की मातृभाषा कन्नड थी। अबतक पाँचवीं तथा लगभग नौवीं सदी में रचित कन्नड कविताएँ प्रकाश में आयी हैं। इसके चरण शैलीगत विभिन्नता तथा भिन्न-भिन्न अनुप्रास लिए हुए हैं। वे कंद, वृत्त, प्रियकर तथा त्रिपदी छंदों में रची गई हैं, इसके अंतिम दो छंद देसी हैं। वृत्त छंद में लिखि गई कविताएँ, सामान्यतः प्रसिद्ध कर्नाटक वृत्तों में लिखी गई हैं, साथ ही अभिजात काव्य में भी इस प्रिय वृत्त का उपयोग किया गया है। गुंडलहळ्ळि पुरालेख (760) के कन्नड लेखक दिव्य भाषाकलन के बारे में विशेष जानकारी नहीं है। विज्जिक्का राजकुमार चंद्रादित्य की प्रिया ने कौमुदी महोत्सव नामक नाटक संस्कृत में लिखा। ये दोनों रविकीर्ति के परवर्ती साहित्यकार थे। पूर्वी कदंबों के काल में कोई कन्नड काव्य की रचना न होने के कारण कन्नड काव्य को फूलने फलने का गौरव या तो गंगों को या चालुक्यों को मिलता है या फिर इसका श्रेय एक मात्र बादामी शासनकाल को जाता है। रविकीर्ति- एक आदर्श कवि संस्कृत साहित्य में गद्य, पद्य तथा नाटकों में उत्कृष्ट साहित्य की रचना पहले ही हो चुकी थी / संस्कृत साहित्यकारों के लिए यह एक उत्तम क्षण था कि वे अपनी सृजनात्मक प्रतिभा को परख सकें और इसके लिए उनके साथ वातावरण भी था। यह एक ऐसा परिदृश्य था कि रविकीर्ति एक सुंदर राजनीतिक इतिहास तथा साहित्यिक उत्कृष्टता में पहली तथा स्वच्छ साँस की तरह अवतरित हुआ और एकदम नये तथा बेजोड पुरालेखिय काव्य का अग्रदूत बना। परवर्ती कन्नड कवियों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236