Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 180
________________ 136 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य हाल ही में, जैनों से संबधित सात पुरालेख एम. बी. नेगिनहाळ द्वारा खोजे गए, जो दुबारा इस बात की पुष्टि करते हैं कि सातवीं सदी से लेकर 14 वीं सदी तक आडूर पर जैनों का विशेष प्रभाव रहा है। धर्मगामुंड के वंश के बल्लगाकुंड, विक्रमगावूड, केशवगामुंड, हरियमगामुंड आदि ने आडूर में जैनधर्म का दीप निरंतर जलाए रखने का काम किया है। इसी तरह श्रीनंदी भट्टारक, माधवचंद्रदेव, कुमारसेन मुनि ने मुनिपरंपरा की अखंड श्रृंखला बनायी। बार बार आनेवाले ये पुरालेखिय साक्ष्य आडूर में जैन आश्रमों के अस्तित्व पर जोर देते हैं। ऐहोळे-शिल्पकारों का स्वर्ग द्विभूज अंबिका, अष्टभुज ज्वालामालिनी तथा चतुर्भुज श्यामयक्ष की स्वतंत्र प्राचीन विद्यमान प्रतिमाएं ऐहोळे की शिल्पकला के उल्लेखनीय उदाहरण हैं। . प्रमुख व्यक्तियों में जिन्होंने चालुक्य शासनकाल की भव्य दिव्यता की वृद्धि की है उन कुशल शिल्पकारों का विशेष उल्लेख करना बहुत जरूरी है। इस युग के कुछ उत्कृष्ट तथा प्रतिभाशाली शिल्पकार जिन्होंने अमुल्य स्मारकों का निर्माण किया और इन सुंदर शहरों में स्वर्ग तथा धरती का मानों संगम ही करा दिया। . ऐहोळे, बादामी, तथा पट्टदकल्ल यह तीन शहर चालुक्य शिल्पकला की शैली के उदाहरण बन गए और मानो ऐहोळे जैसे मंदिरों की अलौकिक राजधानी के रूप में ही खिला। विद्यमान मंदिरों ने तीन संख्या से भी अधिक कर दिया है। यह कला तथा शिल्पकला में उच्च शिक्षा का केंद्र बना। इस केंद्र में गंधर्व कला, शिल्प कला तथा. इसी तरह के अन्य कलाओं का अध्यापन किया जाता था। पुरालेखों में शिल्पकला के प्रतिभाशाली आचार्यों का उल्लेख प्रमुख रूप से हुआ है। शिल्पकार अनिवृताचारी गुंड को कला तथा शिल्पकला के संघ द्वारा त्रिभुवनाचारी के बिरुद से सम्मानित किया गया था। __ सर्वसिद्धी आचार्य, जो संभवतः अपने काल का महत्वपूर्ण कलाकार था, का विशेष उल्लेख बहुत आवश्यक है। पट्टदकल के भव्य मंदिर लोकेश्वर तथा त्रिलोकेश्वर का वह प्रमुख शिल्पकार था। पुरालेखों ने उसके द्वारा बनवाये अद्वितीय शहरों तथा स्थानों की रचना करने तथा सिंहासन आदि बनवाने के लिए साथ ही राजाओं के शाही फर्नीचर आदि बनवाने की खातिर प्रशंसा की है। आचार्य सर्वसिद्धी को 'रूप वास्तु पितामह', वास्तु प्रासादयान अशन शयन मणिमुकुट रत्न चुडामणि की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उनके कई शिष्य बहुत ही प्रवीण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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