________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 159 मंदिर के ऊपरी हिस्से में फिर से बनवाये गए भाग में जिनयुक्त मंदिर का माडल है जिसकी बगल में विष्णुकांत के छोटे स्तम्भ हैं जो उच्च दर्जे की कारीगरी को दर्शाते हैं। गूढामंडप में प्रारंभिक अवस्था की शैली में बने खंभे हैं। वर्तमान ढाँचा बारहवीं सदी के प्रारंभिक दशकों का हो सकता है। जिन-शिल्पकला के संदर्भ में चालुक्य कई बातों में अग्रणी थे। 1. यक्ष-यक्षी की संकल्पना से पहली बार परिचित कराना तथा इस धारा को लोकप्रिय भी बनाना। 2. ऐरावत पर आसनस्थ इंद्र तथा इंद्राणी की परिकल्पना को लोकप्रिय बनाना। मीन बसदी के दाहिनेवाले मुख्य भाग में 25 मीटर लंबा वर्णनात्मक पैनल, हालाँकि अधुरा है, फिर भी उल्लेखनीय है। 3. कथ्यपरक शिल्प बनानेवालों में सबसे प्रथम, जैसे, शिल्पों पर पार्श्व, बाहुबलि, तथा अंबिका और इंद्र के जीवन को चित्रित करना। 4. उच्च गुणवत्ता की कला तथा सौंदर्य से युक्त शिल्पों का प्रतिनिधित्व करने में प्रथम। 5. पार्श्व तथा बाहुबलि से संयुक्त शिल्प का सजीव चित्रण करनेवालों में प्रथम रहे हैं, जो शिल्पकारों तथा भक्तों के पसंदीदा हो गए। जिसकी चरमसीमा की गवाह है एलोरा की जैन गुफाएँ। 6. अंबिका, ज्वालामालिनी तथा श्याम की स्वतंत्र प्रतिमा बनानेवालों में सर्वप्रथम 7. मंजिलोंवाला मंदिर बनानेवालों में सर्वप्रथमा / 8. कई घटकों से युक्त मंदिर निर्माणकारों में प्रथम। __ पट्टदकल्ल का जैन नारायण मंदिर सांतरों का मंदिर है। जहाँ मंदिर के गर्भगृह में जाने से पूर्व भक्तों को मंदिर की तीन परिक्रमाएं लेनी होती है। मंदिर का गर्भगृह, सभा मंडप, तथा लंबा मुख-मंडप बहुत ही विशाल है तथा उसके ऊपर एक और प्रार्थनागृह है, और ये राष्ट्रकूटों के शासनकाल के हैं। सारांश शिल्पकारों और कलाकारों ने नियमों का पालन करते हुए तथा अपने कारीगरी को अपनी परिधि में व्यक्त करते हुए जैन परंपरा का मिथकीय तथा रहस्यात्मक दृश्य दिखा दिया। उनकी भक्ति से भरी नक्काशी के कौशल्य से जैन मिथक के जगत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org