Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 205
________________ PORNDICRORDaa अध्याय नौ साहित्य जैनधर्म, इसकी शैक्षिक तथा तात्विक अंतर्दृष्टि, चर्चा की पृष्ठभूमि पर विस्तृत रूप से फैलने वाला धर्म रहा है। जैन दर्शन के संग्रहस्थल, और उसकी प्रादेशिकता में बहुत बड़ी योग्यता है तथा भारतीय प्रादेशिकता के अधिवासिय संदर्भ में एकात्मकता लाने के लिए विविध प्रदेशों की भाषा तथा संस्कृति से विशेषाधिकार पाया। इन प्रदेशों के लोकाचारों में उनके योगदान के बारे में बढ़ा-चढाकर कहने की जरूरत नहीं है। इन्होंने एक बृहत साहित्यिक परंपरा का निर्माण किया है। जैसा कि उत्तर में गुजरात, राजस्थान, तो दक्षिण में कन्नडनाडु तथा तमिलनाडु में इनके ऐतिहासिक अस्तित्व, सामाजिक विकास, साहित्यिक तथा कलात्मकक्षेत्र में बड़ा योगदान रहा है। दक्षिण प्रदेश प्रमुखता से बहुत प्राचीन तथा दिगंबर परंपरा का निरंतर अधिवास होने के कारण इनका साहित्यिक योगदान इसी प्रदेश में विशेष रूप से रहा है। ह्युन चे सांग ने भी कांचि तथा मदुरै में दिगंबरों तथा उनके देवकुलों के मंदिरों के होने का उल्लेख किया है। कर्नाटक में भी प्राचीन काल से ही जैनधर्म अपने साथ कला, शिल्पकला तथा साहित्य वातावरण बनाता चला आया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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