________________ 158 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य 8. SII Vol. XX, No 244 D. स. 968-69 9. Ibid, No.245, D. स. 968-69 10. Ibid, No.47 11. Ibid, No.55 12. Epigraphia Carnatika, VOI,VIII ( BLR) Sorab, 428, ई.स. 1383 गिणिवल (Shimoga Dist) कई प्रदेशों के बडे-बडे लोगों ने शंखजिनालय को निधियाँ दी। 13. SIL. Vol. XX. No. 232, ई.स. 1412. 14. Ibid, Vol. XX. No 321. ई.स. 1583, Records an amicable settlement of a dispute between the devotes of the Sankhajinalaya and Somnatha devalaya तथापि, नगर के पुरालेखों में प्रथम तथा पहला नाम पाने का सम्मान शंखबसदी ने पाया है। इस प्राचीन जैन संस्था को सबसे पहले छठी सदी में दान मिला था। जैसा कि पहले कहा गया है, पंचकूट बसति (वर्तमान ढाँचा) राजा भुवनैकमल्ल ने बनवायी थी। (1068-76) और होम्बुज में यह पहला जैन मंदिर है जिसके पाँच भाग है। मंदिर की बुनियाद दो सपाट वप्रों तथा पद्म पर खडी है। अधिस्थान भी दो तहों की जगती तथा कर्णक, कपोतपाटी और नक्रप का से बना है और रंगमंडप में मकरों के आकार में बनवाया गया है। और इन मकरों के मुख एक * दूसरे के आमने सामने हैं। और इसकी सबसे दिलचस्प बात रंगमंडप के दक्षिण में लंबा .पुष्पखंड-जाल है। जिसका काफी हिस्सा अधिकतर स्पष्ट है और साथ ही इसमें एक तरह की तरतीब भी नज़र आती है। लंबा तथा चौडा खंभ अपनी बारिकियों के साथ है उसे देखकर ऐसा लगता है जैसे बांबु की छाल से बनवाया गया हो। खुदवाया कक्षासन अपने युग की शैली का नहीं है। दालान के अंदर के खंभे सपाट श्रीकार, चित्रखंड से बने हैं जिसमें इधर उधर कुछ नक्काशी दिखाई पडती है। इसकी दुर्लभ बात इतनी ही है कि सामनेवाले दालान में रखा गया सहस्त्रकुट। (डाकि एम, ए, : EITA: 1996-177) . “पंचकूट के जैन मंदिर के दक्षिण विमान अच्छे से सुरक्षित रखा गया है। सामान्य सा कपोटबंध आदिस्थान, अनेक शहतीरों की दीवारें, दो जोडी उपभद्रों के भद्र, सुभद्र के मुख पर खट्टक, शिखरयुक्त छत (जिसका शिखर नहीं है), कपिल्ल के ऊपर खुखनास आदि मंदिर की सामान्य बातें दिखाई देती हैं। उत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org