Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 188
________________ 144 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य गया था। यह अपने युग का शिला मंदिर था। इसका ऐतिहासिक महत्व इसलिए भी है कि यही एक मात्र पहला मंदिर है जिसपर उसके बनवाने की तिथि तथा बनवाने वाले का नाम (रविकीर्ति) दर्ज है। सामान्यतः यह ऐसा पहला मंदिर है जो द्रविड शैली की शिल्पकला में बनवाया गया था। अन्य मंदिर जैसे लाड़खां, हुच्चप्पगुडी, दुर्गागुडी आदि एक ही काल के मंदिर हैं। जैन मंदिरों की शिल्पकला का अध्ययन उसके बाह्य विवरण तथा अद्वितीय आंतरिक घटकों के आधार पर किया जा सकता है। जिनालयों का बाह्य पक्ष तुलनात्मक रूप से सपाट तथा सादा होता है। जिनभवन सादगी का प्रतिरूप होते हैं। अतः उक्त मंदिर के दरवाजे की चौखट एकदम सादी है। अग्र दालान की हस्तिहस्ता सीढि अर्धमंडप की ओर जाती हैं जो विमान के शिल्प से सुसज्जित है। अर्धमंडप के पाँच द्वार, चार स्तम्भ तथा उसकी तरंग पोटिकाएँ गर्भगृह की चौखट, अदंर तथा बाहर की दीवारें सभी नितांत सादी तथा सामान्य हैं। इस प्रकार मंदिर में गर्भगृह, भ्रमंतिका मार्ग; सुखनासी, अर्धमंडप, तथा खंभों से बना बरामदा है। खाली दालान हैं, प्रदक्षिणा पथ में प्रकाश जाल-गवाक्षों (पत्थर में खुदवाई सलाखों की बनी खिडकियाँ) से आता है। सांदरों का यह विशाल जिनभवन पहाड के सबसे बड़े शिखर पर बनवाया गया। कपोतबंध वर्ग के अधिस्थान की गहरी विशाल चट्टानों पर यक्षों की विविध मुद्राओं में जैसे वाद्य बजाती यक्षों की अप्रतिम प्रतिमाएं खुदवाई गई हैं जिसकी विशेष दखल लेनी आवश्यक है। .. विक्रमादित्य प्रथम के शासनकाल के अंतिम वर्षों में मंदिर का विस्तार करते समय अर्धमंडप का विस्तार किया गया और सामनेवाला दालान भी बनवाया गया। इसी दौरान गर्भगह के ऊपर गर्भगह बनवाया गया। अतः परम गर्भगृह की परिकल्पना परवर्ती थी तथा परवर्ती परिवर्धन था। इसी प्रकार परिक्रमा पथ भी बाद में छोटी छोटी कोठरियों में बदल दिया गया, संभवतः चातुर्मास के दौरान धर्मगुरुओं के वास के लिए ऐसा किया गया हो। आधे दालान की पूर्वी दीवार पर रविकीर्ति का एक लंबा संस्कृत भाषा में लिखा पुरालेख है जो जिनेंद्रभवन को अलौकिक बना देता है। विशेषतः वह पुरालेख दार्शनिक तथा धार्मिक सिद्धान्तों को नहीं बल्कि कवि के राजनीतिक चित्र तथा सांस्कृतिक उद्देश्य को ही परावर्तित करता है। इस मंदिर के प्रमुख देवता को पहचाना नहीं जा सकता कारण रविकिर्ति ने मात्र जिनेंद्र भवन का ही उल्लेख किया है। रविकीर्ति ने इस मंदिर के लिए अन्य दो नामों का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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