________________ 124 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य ज्वालामालिनी देवी प्रो. एस शेट्टर ने ज्वालामालिनी की प्रतिमा की प्रमुख प्रतिमागत प्रवृत्तियों का विस्तृत विवरण दिया है। वह भद्रासन में बैठी हैं। उसका बायां हाथ नीचे अपने वाहन पर स्थिर है। उसके पार्श्व में एक पाषाण की मेहराब है तो उसके सिर के ऊपर एकछत्र। वह पूर्णरूपेण अलंकारों से सुसज्जित है। उसके गले में एक हार है, जो रत्नजड़ित है, जिसे कंठी कहा जाता है और उसके छाती का आभूषण है, वैकक्षक जिसमें मंगल फलक है। उसकी देह पर एक पट्ट है जो यज्ञोपवीत की तरह है। उसने रत्न कुंडल भी पहने हुए हैं, तो साथ में नूपुर तथा कंगन भी है। कमरबंद जिसके कई सारे पदक उसकी मृदुल जांघो पर लटके हुए हैं। उसके सिर के पीछे एक प्रभामंडल है। उसने करंड-मुकुट पहन रखा हैं। जिसके मध्य में आसनस्थ जिन की प्रतिमा है। उस मुकुट से दूसरी ओर ज्वालाएँ परावर्तित हो रही हैं। उसके केश उसके कंधों पर फैले है। उसने बाजूबंद भी पहने हुए हैं। - उसके आठ हाथ है, उसका बायां पैर तथा उसका वाहन टूटा हुआ है और बाकी सब ठीक ठाक है। इस देवी के दाहिने वाले चार हाथों में बाण, त्रिशूल, चक्र, तथा खड्ग है तो बायें वाले चार हाथों में धनुष्य, कश तथा शंख है और एक हाथ उसकी जंघा पर है तो दूसरे हाथ में कोई फल है। जैसा कि ऊपर कहा गया है देवी का वाहन सिवाय उसके दो सिंगों तथा पूँछ के अलावा सब कुछ नष्टप्राय है, जिससे इस बात का पता तो चलता है कि यह वाहन या तो भैंसा हो या बैला __यक्षी की देह एकदम समानुपातिक, धीर, गंभीर तथा उसकी बनावट एकदम वैशिष्ट्पूर्ण है। उसके गोल तथा कठिन वक्षों पर यज्ञोपवीत है। रत्नजटित माला वैकक्षक जो वक्षों को उभार देते हैं और पदक जो उसके दोनों वक्षों के मध्य से गुजरता है और मध्यपट पर स्थिर होता है जो बहुत प्रभावशाली लगता है जिसे बहुत ही सलीके से तराशा गया है। उसकी कमर पतली है, और लचीले पेट तथा लचिली रचना सब मिलकर उसके भारी वक्षों को आधार प्रदान करते हैं, उसके कई हाथ तथा शंखाकार मुकुट है / यह प्रतिमा एकदम सुंदर तथा मेगुडी मंदिर की अंबिका की प्रतिमा के बराबर है, जिसे जैन धर्म की सेवार्थ इस जगह के शिल्पकार ने तराशा था। उसके मुख पर तटस्थता और शांति है। यह भाव उसकी अधमूंदी आँखों तथा अच्छे से तराशे अधरों से अभिव्यक्त होते हैं। उसकी लंबी तथा कोमल उंगलियाँ भारी तथा तेज अस्त्र पकडे हुए हैं जैसे कि देवता अपने चेहरे पर अपनी शक्ति को धारण कर लेती है। उसके मुकुट से तेज ज्वालाएँ उठ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org