________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 103 पाँचफनों वाला धरणेन्द्र तथा एक फन वाली पद्मावती (नागराज तथा नागरानी) पार्श्व के दायें-बायें प्रार्थना की मुद्रा में बैठे हैं। अन्य अलंकृत देवतागण अपने मुकुटयुक्त शीश तथा प्रभामंडल के पीछे अपनी-अपनी पत्नियों के साथ जिन की अगल बगल में प्रार्थना की मुद्रा में खडे हैं। यही चित्र दक्षिण दीवार पर भी दिखता है जहाँ खेचर प्रमुख अपनी रानियों के साथ उपर्युक्त वर्णित चित्र के समान ही खडे हैं। यह फलक चित्र फिर उत्तर दीवार पर वैसे ही चलता है, जहाँ इंद्र तथा इंद्राणी अपने ऐरावत पर सवार अपने दलबल के साथ जिन की भव्यता में भाग लेने चले आ रहे हैं। इंद्र इंद्राणी के शिल्पों में यह शिल्प सबसे प्राचीन है। (नाराजय्या हंप : Indra in Jain Iconography: 2002). तथापि, इसका अंतिम भाग लंबी लकीरों में खत्म हो जाता है जो तराशा नहीं गया है। संक्षेप में, यह अप्रतिम फलक प्रत्येक जिन के जीवन में पंच कल्याण के सारतत्व को उत्कृष्टता से किंतु स्पष्टता से प्रकट करता है। विशेषकर इसका जो सार भाग है वह यह कि जिन की पूजा करते हुए नागराज, सूर, खेचर तथा उनका दल-बल पारंपरिक वर्णन के अनुसार एक पंक्ति में खड़े हैं, जो यह बताते हैं कि . जिन की पूजा हर वर्ग-जाति के लोगों ने की है- 'नागामर-खचर-पति-पूजितं'। हालाँकि यह शिल्पाकृति तत्कालीन शिल्पकारों द्वारा प्रशंसात्मक रूप से पूर्वनियोजित थी किंतु ताज्जुब है कि * तत्कालीन शिल्पकारों द्वारा इसे ऐसे ही छोड दिया गया है। ....यह शिल्पाकृति कर्नाटक के जिन स्मारकों में अद्वितिय है....लेकिन यह प्रदर्शन से अधिक उसकी योजना के कारण विशेष रोचक है। इन अपूर्व प्रतिमाओं का पूर्ण रूप से ठीक ठीक मूल्यांकन नहीं किया गया। परंतु जितने भी थोडे मूल्यांकन हुए हैं वे यही कहते हैं कि इसका नियोजन बढिया रहा है। मानवीय आकृति की वह बनावट, आभूषणों का उचित प्रयोग, स्त्री-पुरूषों की शिल्पाकृतियों की सुरम्यता शिल्पकारों की कुशलता तथा प्रतिभा का ही प्रमाण देती हैं। छेनि के चिह्न अभी भी गहरे उभरे दिखते हैं। लंबी लकीरे आज भी बरकरार है। मुख और शरीर का कुछ भाग अभी निर्माणाधीन हैं। इस फलक का अपना ही एक आकर्षण है। इसको देखकर पूरी संतुष्टी नहीं होती पर यह हमारी उत्सुकता को अवश्य बढाता है। इस प्रकार का कोई भी फलक कर्नाटक के किसी भी कलाकार द्वारा मंदिर की पृष्ठभूमि पर बनवाने की योजना नहीं की होगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org