________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 119 2. ग्यारहवीं सदी की शिमोगा 9कर्नाटक) में स्थित प्रतिमाएँ (SI.No. 77 p. 130) 3. नौंवी सदी की अकोटा में स्थित दो कांस्य की मूर्तियाँ (SI.No. 9 p. 49) 4. माऊंट आबू के लूण वसही मंदिर के बरामदे की छत पर तराशी 13 वीं सदी की प्रतिमा (SI.No. 18 p. 58) 5. कर्नाटक के कंबंदहळ्ळि के पंचकूट बसदी की स्वतंत्र मूर्ति (SI.No. 79 p.133) 6. आठवीं सदी की भाल्कि में स्थित स्वतंत्र स्थानांतरित प्रतिमा (कर्नाटक) (इस पुस्तक के लेखक द्वारा खोजी गई) 7. दिलचस्प बात यह है कि ज्वालामालिनी जो काल और स्थान के क्रमानुसार अंबिका से संबंधित है, उसका बायां पैर नीचे की सीढी पर लटकता हुआ दिखाया गया है। जगन्नाथ सभा जैनगुफा (एलोरा) के मंदिर के मुख्य दालान के द्वार पर हमने अंबिका की ऐसी आकृति देखी, जिसमें वह अपना दाहिना पैर मोडकर बैठी है। यह सारी विभिन्नताओं पर विचार की आवश्यकता है। आश्चर्य की बात यह है कि इस पुस्तक के लेखक ने एक ऐसा उदाहरण भी पाया है जहाँ अंबिका जिन की बगल में बैठी है, उसका बाया पैर सीढियों पर लटक रहा है और दाहिना पैर मुडा हुआ है। यह शिल्पाकृति कंबदहळ्ळि के पंचकूट के मंदिर के मध्यवर्ती छत में बनी है और मध्य में बैठे नेमिनाथ के चारों ओर दिक्पालक हैं। शिल्प कलाकारों को मान्य रीति रिवाजों को क्यों बदलना पडा यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। ऐहोळे की अंबिका की शिल्पाकृति की प िका (1.22 x 1.52) अप्रतिम है। परिवार में देवी अंबिका की अनुयायियों में से तीन दाहिने ओर एक बगल में तथा दो-तीन दाहिनी ओर उसके चरणों के पास है। और ये सभी खडी हई छोटी छोटी देवियाँ ही है। नीचे की ओर बैठी एक सेविका की आकृति अधिकतर टूटी हुई है जबकि दूसरी महिला की प्रतिमा दिखाई तो पडती हैं किंतु उसका मुख भी कुछ टूट सा गया है। दाहिने ओर के अनुयायियों में से एक के हाथ में कद्दु के आकार का फल है। उसकी सुंदर आकृति उसके दाहिने खंडित पैर के साथ अखंड है और उसका मुस्कुराता चहरा उसके उल्लास को ही परावर्तित करता है। एक और अप्सरा जिसका चहरा धुंधला सा है अपने स्वामिनी के बच्चे को उठाए हुए है। दुर्भाग्य से बालक का चेहरा तथा पैर आदि भग्न हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org