________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 121 एक ही फन में दिखाया गया है और जिस प्रकार ये दोनों एक दूसरे से लगकर खडे हैं उससे यही लगता है कि ये दोनों पति-पत्नी है। . ___ बायीं ओर से मंडराकर आनेवाली प्रतिमाओं के हाथ में एक बहुत बड़ा फूल हैं जो जिन पर फेंकना चाहती है तथा वह प्रतिमाएँ जो हाथ जोडकर बैठी हैं इन आकृतियों की समानता पर मनन करते समय हमें यही लगता है कि वे एक ही व्यक्ति का प्रतिनिधित्व कर रही है। राजमुकुट तथा बाजुबंद के अलावा बायें कंधे से दायीं ओर जानेवाला मुक्तामणि का यज्ञोपवीत दोनों प्रतिमाओं की घनिष्ठ समानता को ही दर्शाता है। यह समानता उनकी पहचान को दर्शाने के लिए ही है। अतः प्रार्थना की मुद्रा में बैठा पुरूष कमठ है। ___ पार्श्व और (धरणेन्द्र) अपने फन पर चमकते मणिवाले नागराज का संबंध की प्राचीनता महाकवि विमलसूरि के नागेन्द्रकुल (CE.473) में पायी जाती है। पासं उरग महाफणि-मणिसु पज्जलियम (विमलसूरिः प्राकृत पउमचरिय) (1.6) क्रमानुसार तथा सामान्य शब्दों में समन्तभद्रदेव (550-600) प्रसिद्ध स्तुतिकार ने चतुविंशति जिन की प्रार्थना स्वयंभू स्त्रोत्र में धरणेन्द्र के प्रकटीकरण की स्पष्ट चर्चा की है। - नागछत्र एक प्रतीक है और अर्हत. पार्श्व तथा उसके पूर्वजों के साथ नागजाती के संबंध का सूचक है। देवजाती के नागकुमारों के स्वामी धरणेंद्र का उल्लेख आगमों में है, जिसकी रचना पहली तथा चौथी सदी के मध्य की गयी थी। इसी प्रकार उपसर्ग का संदर्भ तथा धरणेंद्र के तथा पार्श्व का अंतःसंबंध पहली बार मथुरा के पार्श्व की प्रतिमा में पहले मिला था जो कि दूसरी तथा तीसरी सदी की है। जबकि कमठवध का प्रतीक परवर्ती है और यह विश्वास चौथी सदी के बाद ही प्रारंभ हुआ था। इस संबंध में, ऐहोळे तथा बादामी की गुफाओं की पार्श्व तथा उपसर्ग के शिल्पों के साथ महत्तर ऐतिहासिक महत्व जुडा है कारण वे प्राचीन विद्यमान नमूने हैं। शिल्पकारों की सामग्री का स्त्रोत संभवतः यतिवृषभ (550) की कृति तिलोयपण्णति (त्रिलोक- प्रज्ञापति) होगी। जैसे धनसेनाचार्य ने विस्मृत मे जानेवाले षट्खंडागम को लिपिबद्ध कराया। उसीप्रकार यति वृषभाचार्य ने त्रिलोकसार को लिपिबद्ध किया और जैन परंपरा को अनुसार चार अनुयोगों में प्रथमानयोग को विशेष महत्व दिया। इस कारण से यक्ष- यक्षियों क परंपरा साहित्य में प्राप्त हुई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org