________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 59 इस शहर के आसपास कन्नड बोली जाती थी तथा साम्राज्य के विज्ञ लोगों ने इसका कई सौ वर्षों तक समर्थन किया। बहुत पहले से पुलिगेरे धार्मिक स्थान के रूप में फूला फला। विद्यमान पुरालेख यह स्थापित करते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि छठी सदी के पूर्व से ही यह जैनों के अधिवास का स्थान था। लिखित अभिलेख निश्चित रूप से कहते हैं कि यह राजघरानों का पवित्र स्थान था। शंखजिनालय सबसे प्राचीन मंदिर तथा चालुक्यों की इष्टदेवता था, जिसने राजघरानों से मुक्त हस्त से आनेवाली निधियों का आनंद लिया। चालुक्य राजवंश का यह प जिनालय था। शंख लांचन (अर्थात प्रतीक,चिह्न) है, जो 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ की पहचान है। अतः यह अनुमान लगाया जाता है कि शंख जिनालय के मूलनायक नेमिनाथ थे, गर्भगृह में प्रतिष्ठित देवता थे। आदिकदंबों के युग में सारा परिदृश्य उत्तरोत्तर तेजी से परिवर्तित होने लगा। इस युग में जैन आश्रमों, गुफाओं तथा मंदिरों को दिए गए अनुदान अनगिनत . शिलालेकों में दर्ज होने लगे जो कि उनके प्रभामंडल का ही एक उदाहरण है। साम्राज्य में जैनधर्म का उदय एक शक्तिशाली धर्म के रूप में हुआ था। जिसने राजनीतिक साहित्यिक-सांस्कृतिक परिदृश्य पर अपना वर्चस्व कायम किया। सम्राटों तथा उनके सामंत राजाओं ने इस धर्म को प्रभावी तथा महत्वपूर्ण (वैशिष्ट्यपूर्ण) बनाने के लिए अपना सहयोग दिया। संक्षेप में जैनधर्म ने राज्य के धर्म के रूप में प्रतिष्ठित स्थान पाया था। ____ भद्रबाहु तथा उसका राजभक्त चन्द्रगुप्त का स्थानांतरण जैन प्राधानता की पहली लहर थी। फिर बनवासी कदंबों तथा गंगों के उत्तराधिकारियों का काल उनके प्रभाव का दूसरा चरण था। चालुक्यों के समर्थन में जैनधर्म का उल्लेखनीय प्रभाव तथा उर्वरशक्ति दोनों दक्षिण के इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड गये। यह प्रभाव तथा वर्चस्व कुंतल विषय में उनके अधिनस्थता की तीसरी लहर मानी गयी और यह ऐसा ही चलता रहा और राष्ट्रकूटों के काल में अपने वर्चस्व तथा लोकप्रियता की चरम सीमा पर पहूँचा जो जैनों के प्रभाव का चौथा चरण था। राजनीतिक रूपरेखा उनके रागरंग में अक्सर बदलती रही। सांस्कृतिक विकास में राजनीतिक संघर्ष बाधा नहीं था। निर्ग्रथों की प्रेरणा से कला, शिल्पकला, साहित्य तथा वास्तुकला में उनके उल्लेखनीय कार्य दर्ज हैं। विशाल राजतंत्र के शहरी तथा ग्रामीण तानेबाने में इसका प्रभाव घुलमिल गया था। राजाओं ने किलेबंदी कर अपने राज्यविस्तार के लिए अपने शत्रुओं से रक्तरंजित युद्ध किए थे। धार्मिक नेताओं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org