________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 75 चालुक्यों के रनिवास की महिलाएं वास्तुकला को समर्थन देने में सबसे आगे थीं। 1. विनयावती (विजयादित्य की माता) ने बादामी में एक और त्रिकुटाचल . (जंबुलिंग देवालय) की स्थापना की। 2. कुंकुम देवी ने पुलिगेरे में आनेसेज्जेय जिनभवन का निर्माण किया। 3. विनापोटि राजगणिका तथा विजयादित्य की प्राणवल्लभा महामुकुटेश्वर को रत्नपीठ, रजतछत्र तथा जमीन दान में दी थी। कळ्वप्पु की व्युत्पत्ति पर काफी चर्चा परिचर्चा की गई किंतु कोई भी व्युत्पत्ति उक्त पुस्तक के लेखक समेत किसी की भी व्युत्पत्ति ग्राह्य नहीं हो पा रही है। कळ्वप्पु इस शब्द का वास्तविक अर्थ है गीध की पहाडी। इस सुझाव का समर्थन करते हुए मैं एक और उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ। तमिलनाडु का कळुगुमलाई जिसका अर्थ भी गीध की पहाडी ही है। कळ्वप्पु तथा कळगुमलै दोनों देशी शब्द है जो संस्कृत के गृद्धकूट के समान है जो जैन तथा बौद्ध दोनों के ऐतिहासिक अभिलेखों में प्रकट होते हैं। इस संदर्भ में राजगृह में स्थित प्रसिद्ध गृद्धकूट का भी स्मरण किया जा सकता है। जैन धर्मगुरु गृद्धपिछि को धारण करने के लिए जाने जाते हैं। कोंडकुंदाचार्य को दक्षिण भारत की जैन परंपरा में महत्वपूर्ण पद गृद्धपिंछाचार्य की उपाधि मिली थी। अतः तामिलनाडु में कळुगुमलाई तथा कर्नाट देश में कळ्वप्पु दक्षिण गृद्धकूट है जो सादगी तथा मृतक की शांति ते लिए जाने जाते है। शंखजिनालय युग के सभी जैन मंदिरों में उच्च सिद्ध हुआ है। इसी के सादृश्य, ऐहोळे में स्थित राजकवि रविकीर्ति का जिनेंद्रभवन, युग का एक अन्य शिखर साबित हुआ है। क्योंकि इसे एक शिखर की चोटी पर बनवाया गया था। यह मंदिर अपने उपनाम मेगुडि से बहुत लोकप्रिय हुआ। मंदिर में देवी अंबिका की प्रतिमा की प्रतिष्ठापना के आधार पर कुछ इतिहासकार तथा विद्वानों ने यह संकेत दिया है कि यह मंदिर 22वें तार्थंकर नेमिनाथ को समर्पित किया गया था। मेगुडि सबसे प्राचीन जिनालय अपने भव्यशिल्प में आज भी विद्यमान है। इस विशेष भव्य शिल्प रचना का पता चलते ही कई जैन मंदिरों में इस शिल्प का ही अनुकरण किया गया। मेगुडि, पत्थरों के मंदिर को रविकीर्ति द्वारा ई.स. 634 में रचित अद्वितीय शिलालेख ने अमरता प्रदान की। ऐहोळे में स्थित जैनगुफा (शहर के दक्षिण पश्चिम भाग) छठी सदी के अंतिम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org