Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 127
________________ 84 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य हमेशा अपना योगदान दिया है। बौद्ध तथा जैन धर्म दोनों समान गति से फूले फले और वैशिष्ट्यपूर्ण कला तथा शिल्पकला का विकास हुआ। (Ghosh, A:1989 : p. 161) फर्ग्युसन हेनरिच झिम्मर तथा अन्यों का यह ठोस कथन है कि जैनों ने एक भिन्न शिल्पकला की शैली के निर्माण में योगदान दिया। एक विशेष शिल्पकला का वैशिष्ट्य, स्मारकों के विशेष संदर्भ में, जो जैनों को समर्पित थे, वे संख्या में अधिक और वैशिष्ट्यपूर्ण भी थे। आदिगंगों तथा आदिकदंबों ने कुंतलदेश में जैन शिल्पकला युग की पहल की। उन्नत जैन शिल्पकला को प्रवाहित करने का श्रेय बादामी शासन को जाता है। जैन शिल्पकला का प्रारंभिक स्वरूप ऐहोळे में दृष्टिगोचर होता है। ऐहोळे के साथ साथ बादामी की गुफाओं ने पाषाण-शिल्पकला का भव्य तथा स्वर्णिम अध्याय खोला। फिर भी हम पाषाणी शिल्प की परंपरा के अनुकरण को नज़र अंदाज नहीं कर सकते। मेगुडी, प्रगतिशील चालुक्यों तथा जैनकला के रचनात्मक मंदिरों का प्रारंभिक उदाहरण है। प्रतीक तथा ओजपूर्ण शैली में कठिन पाषाणों पर की गई रहस्यात्मक बिंब योजना अपना अमिट प्रभाव छोड जाती है। जैन मूर्तिकला में चालुक्यों का युग एक मील का पत्थर था। मूर्तिकला की सबसे वैशिष्ट्यपूर्ण प्रवृत्ति, उदाहरण के लिए प्रसिद्ध प्रज्ञाता अर्हत पार्श्व तथा बाहुबलि के शिल्प, यक्ष-यक्षी की प्रतिमाएँ, उपसर्ग लक्षण तथा वर्णनात्मक फलक आदि इस युग के दौरान प्रारंभ हुए थे। जब हम जैनकला के लक्षणों की बात करते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि उसे भारतीय कला तथा शिल्पकला की मुख्यधारा से अलग किया जा रहा है बल्कि उसके वैशिष्ट्यपूर्ण प्रवृत्ति की पहचान की जा रही है। जैन, धार्मिक शिल्पकला के प्रथम संरक्षक थे। उन्होंने कलाकारों तथा शिल्पकारों की उदारता से रक्षा की। शिल्पियों तथा मूर्तिकला के कई संघों ने जैन संस्था के लिए काम किया था। आंचलिक परंपरा तथा मिथकीय संकल्पना के आधार पर जैनधर्म ने कई प्रकार की शिल्पकला तथा मूर्तिकला संबंधी रचनाओं का निर्माण किया था। कई बार यह नवप्रवर्तन तत्कालीन युग तथा प्रांत की शैली के अनुरूप होता था। _अनुभव तथा प्रयोग से मूर्तिकारों ने बनवासी के आदिकदंबों के पहले तथा उनके युग के दौरान जैन-शिल्पकला तथा मूर्तिकला संबंधी कुछ विशेषाताओं को विकसित किया। किंतु बादामी चालुक्यों के काल में जैनभवनों की गतिविधियाँ न केवल बढी ही बल्कि मानक भी बनी। राष्ट्रकूटों तथा कल्याण के चालुक्यों के काल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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