Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 125
________________ 82 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य शासनदेवियाँ देवता जैसे अंबिका, ज्वालामालिनी पद्मावती, श्याम तथा धरणेंद्र आदि को ज्यादा पसंद किया जाता था। उपलब्ध रिकार्ड यह बताते हैं कि इस धर्म को श्रेष्ठ तथा सामान्य सबका समर्थन प्राप्त था। चालुक्य जैनधर्म को समर्पित थे और कर्नाटक में जैनधर्म की गहरी जड़ें जमाने का श्रेय भी उन्हीं को दिया जाएगा। विद्यमान निर्गंठ के स्मारक श्रेष्ठसंचालक तथा शिल्पकार की सौदर्य दष्टि के बारे में भरभर कर बोलते हैं, जिन्होंने अपने देवीदेवताओं का सुशोभित उपनिवेश बनवाया। इस काल के जैनधर्म की देवी-देवताओं के लक्षणों की चर्चा अगले दो अध्यायों में की जाएगी। संक्षेप में, चालुक्यों के राज समर्थन से जैन धर्म भव्य-दिव्यता को प्राप्त कर लिया था। जैनों ने राजतंत्र के राजनीतिक, सांस्कृतिक जीवन में प्रतिष्ठित वर्ग रूपायित किया था। राज्य में पत्थरों में बनवाई गए गुफा मंदिरों तथा अन्य आश्रमों तथा मठों की संरचना के अलावा ऐहोळे, आडूर अण्णिगेरि, गुडिगेरि, हूलि के शिलालेखों तथा शंखबस्ति की छत पर पाये गए पाँच शिलालेख साम्राज्य में जैन संघ की साक्ष्य देते हैं। इसके सिवा अधिकतर सामंत राजा जैन धर्म के क र अनुयायी थे। यह विशाल साम्राज्य अक्षरशः प्रसिद्ध जैन केंद्रों, आश्रमों तथा मठों से व्याप्त था। इस युग का / लोकप्रिय धर्म जैन धर्म था जो दिन ब दिन और अधिक विकसित हो रहा. * था और राज तथा सामान्य जनों का समर्थन पाकर खूब फूला फला था। 1* अब तक विद्वानों ने श्वेतपट इस शब्द को श्वेतांबर का समानार्थी समझा था। अतः दिगंबर पंथ में इसपर पुनः विचार की आवश्यकता है। पाँच प्रकार के मुनि होते हैं, पुल्लक, बकुश, कुशील, निग्रंथ तथा स्नातक अथवा केवलि दिंगबर पंथ में मुनि समुदाय में प्रतिमा अथवा उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा के कई चरण होते हैं। ग्यारहवे चरण में तीन टुकडों के धवल वस्त्र धारण करनेवाले त्यागी को क्षुलक्क तथा एक ही धवल वस्त्र धारण करनेवाले को ऐलक कहते हैं। विशेष रूप से बनाए गए भोजन तथा निवास का भी वे स्वीकार करते हैं। कदंबों के शिलालेखों में निग्रंथ तथा श्वेतपट का उल्लेख होने से श्वेतपट शब्द की व्याख्या क्षुलक्क तथा ऐलकों के समान सफेद वस्त्र धारण करनेवाले मुनि होती हैं, किंतु वे निग्रंथ नहीं थे। श्वेतपट तथा श्वेतांबर दोनों शब्द देखने में समान लगते हैं पर वे समान है या भिन्न इसकी जाँच अभी होनी शेष है। श्वेतांबर शब्द के प्रथम उल्लेख तथा उसकी ठीक ठीक तारीख पर पुनःविचार की आवश्यकता है जिससे श्वेतपट शब्द का सही अर्थ परिभाषित हो सके। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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