________________ 16 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य प्राप्त की है। और वह अपने सैन्य दल को सूदुर जिलों तक ले गया। लेकिन यहां के लोगों ने उसको समर्पण नहीं किया।' ऐहोळे और बादामी निःसंदेह सुगट (बौद्ध) तथा अरहत (जैन) के महत्वपूर्ण तथा प्रमुख पीठ थे। किंतु शिलालेखों तथा ह्युन त्सांग के यात्रा वर्णन के अलावा राजतंत्र में युद्धों की प्रतिष्ठा का कोई भी लिखित प्रमाण आज उपलब्ध नहीं है। __ चीनी यात्री ईत्सिंग (I-tising) ने पूर्वी भारत के महान राजा लुत्प-कज्य-व्य अर्थात चन्द्रादित्य राजभृत्य से भेंट की थी। चंद्रादित्य संभवतः विक्रमादित्य का बड़ा भाई, पुलकेशि का पुत्र तथा हर्ष शिलादित्य पर विजयप्राप्त करनेवाला रहा होगा। ईत्सिंग 4-tising) ने यह उल्लेख किया है कि चन्द्रादित्य कवि था जिसने वेस्संतर जातक की रचना की थी (जर्नल ऑफ रायल एशियाटिक सोसायटी (छ.द.:Vol. I. P. 260; IA.Vol. vii : pp. 163-219). ___ रणविक्रम पुलकेशि द्वितीय की दो महारानियाँ कदंब तथा गंगों के राजवंश से थी और तीसरी प्रसिद्ध गंग राजा दुर्विनीत की सुपुत्री थी। कदंब की राजकुमारी पहली महारानी थी। पुलकेशि के पाँच पुत्र थे, आदित्यवर्म, (जिसके पुत्र का नाम अभिनवादित्य था) चन्द्रादित्य, (जिसकी पत्नी प्रसिद्ध विजयाभ रिका थी) रणरसिक विक्रमादित्य प्रथम, (जो कि युवराज था) जयसिंहवर्म (जिसने लाट शाखा की खोज की थी) और राजकुमार रणराग वर्म (संदिग्ध पहचान, जिसे सावंतवाडी का प्रभारी बनाया गया)। आदित्यवर्म को नोळम्बवाड़ी का प्रमुख नियुक्त किया गया था। विक्रमादित्य वैगीमंडल का राजा था। विजयाभट्टारिका को सावंतवाड़ी प्रदेश की जमीन नेरूर से उपहार में दी गयी थी, जिसकी देखभाल उसका पति कर रहा था। धराश्रय नरसिंहवर्मन ने गुजरात शाखा की स्थापना की थी। इस प्रकार पुलकेशि ने अपने पुत्रों को वायसराय के पद पर नियुक्त किया और अंततः प्रियतनु विक्रमादित्य ने साम्राज्य की राजगद्दी संभाली। विक्रमादित्य तथा उसके बड़े भाइयों से संबंधित शेष विवरण आगे पृष्ठों में दिया जाएगा। ख्यातनाम अख्तबरी के अनुसार परशिया के बादशाह खुसरो द्वितीय ने 625 में चालुक्य सम्राट का स्वागत किया था और इस सौजन्य का आदान प्रदान भी हुआ था। पुलकेशि प्रथम से मंगलेश तक का काल एक मजबूत बुनियाद का काल था और पुलकेशि द्वितीय का कार्यकाल यानि जैसे चंद्रमा की शोभा ही थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org