________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 31 परंपरा का स्मरण कराते हैं। इस प्रकार पांडूयों की परंपराओं के गर्भ में इतिहास का बीज धारण करती हैं और बुद्धि भी परंपराओं की वैधता का पुनःविचार करने की सम्मति देती हैं। इस प्रकार राजनीतिक नक्शे पर आळुपाओं का आगमन भूतलों के तुरंत बाद हुआ था। पांडूय राजवंश इसमें विलीन हो गया। तथापि बनवासी के पूर्ववर्ती कदंब रविवर्म (485-519) के प्रकट रूप से अधीनस्थ हो गए। बाद में बादामी के चालुक्यों की अधिराजता को आलूप्यों ने संभाला। महाकूट में स्थित मंगलेश (610-42) के स्तम्भ लेख और 634 में ऐहोळे में ख्यातनाम जैन कवि रविकीर्ति द्वारा संरचित पुरालेखों में यह उल्लेख किया गया है कि आळुपाओं का परिवार अधीनस्थ परिवारों में से एक था। तथापि यह एक रिवाज हो गया था कि आळुपाओं का वंश-वृक्ष आलुवरसा प्रथम (650-63) से खोजते खोजते जाय, जो अधिपति विक्रमादित्य का अतिविश्वासपात्र सामंत था। वह अलूवखेड (तुळुनाडु), कदंब मंडल और संतरों के पोम्बुका प्रदेश का वायसराय था कदंब मंगलेश की पटरानी अलवरसा की पुत्री थी। ताम्रपत्र पर अंकित लेख के अनुसार आळुवरसा मारुटूरु से गुंटुर जिले में स्थित कल्लूर के अभियान पर अपने सामंताधिपति की प्रार्थना से जा रहा था कि ई.स. 663 में अति थकान के कारण मृत्युमुखी पड़ गया। आलूपा ईडेवोळल तथा तोरमार विषय के प्रमुख थे। आळुवखेड 6000 की प्रसिद्ध उक्ति पहली बार राष्ट्रकूटों के शासनकाल में अवतरित हो रही थी। जो तुळुनाडु प्रदेश का बोध कराती है। इंदपय्या को आळुवखेड 6000 जिले का प्रभारी बनाया गया। इस ऐतिहासिक तथ्य के अलावा कुछ भी रिकार्ड तुळुदेश के राष्ट्रकूटों से नहीं आया। तुळुनाडु और आलूपा एक ही सिक्के के दो पहलू थे। लगातार बारह शताब्दियों तक उन्होंने आळुपाओं की कप्तानी से ज्वार-भाटे को देखा था। इस प्रकार आळुपाओं का इतिहास ही तुळुनाडु का इतिहास है। ___ तब भी आळुपाओं का क्रम राजा आलूपेंद्र तथा रानी महादेवी के पुत्र राजकुमार चित्रवाहन (680-730) के आगमन से चौंका देनेवाला था, जिसने छः दशक से भी अधिक लंबी अवधि तक शासन किया। उसने आळुपाओं के ऐतिहासिक वृत्तातं में एक स्वर्णिम अध्याय का शुभारंभ किया और उसने पांण्ड्यों के विद्रोह को रोककर अपने अधिपति की प्रशंसा अर्जित की। चित्रवाहन को मुक्तहस्त से सम्मानित किया गया। सम्राट विजयादित्य की छोटी बहन कुंकुम महादेवी से उसका विवाह हुआ। चित्रवाहन ने अपने पिता के समान कदंब मंडल तथा पोंबुच्च राज पर शासन किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org