________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 53 ई. पू. चौथी सदी से फैलने लगा। सामाजिक राजनीतिक संपर्क के रूप में इस विशिष्ट धर्म का उदय और विस्तार हुआ। कर्नाटक में जैनों की धार्मिक परंपरा को ईसा की पहली सदी से देखा जा सकता है। किसुवोळाल क्षेत्र समेत नवनंदों ने कुंतल विषय पर शासन किया। कुंतल कर्नाटक का ही पर्यायवाची शब्द है। जिसमें साढे सात लाख गाँव समाहित है जो विंध्य की पहाडी से दक्षिण तक फैला है। कलिंग के जैन राजा खारवेल ने नंदों द्वारा ली गई जिन की मूर्ति को पुनः प्राप्त किया। यह घटना इस बात का निश्चय करती है कि नंदों का जैनधर्म में विश्वास भी था एवं आकर्षण भी। नंदों के उत्तराधिकारी मौर्यों ने जैन धर्म को उदारता से प्रोत्साहित किया। राजा चंद्रगुप्त मौर्य अपने धर्मगुरु श्रुतकेवली भद्रबाहु के साथ कळ्वप्पु वर्तमान श्रवणबेळगोळ आया था। जहाँ उसने सल्लेखन का व्रत धारण कर अपनी देह त्याग दी थी। अशोक का प्रपौत्र 'संप्रति चंद्रगुप्त' ने जैन धर्म का समर्थन किया। सातवाहनों तथा अन्य उत्तराधिकृत राजपरिवारों के लोगों ने मुनियों, प्रार्थनागृहों तथा आश्रमों को जमीन तथा गाय दान में देकर जैन धर्म को प्रोत्साहित किया। जैन धर्म की गतिविधियों को आश्रय देने में कर्नाटक एक उपजाऊ भूमि सिद्ध हुई और फिर जिसको पुरालेखिय तथा साहित्यिक साक्षों ने भी सहायता प्रदान की। कुप्पटूरु (शिमोगा जिला, सोरब तालूका) के शिलालेख में ऐसा कहा गया है कि चारुकर्नाटदेशम जिनधर्मावासव आड अर्थात् रमणीय या सुंदर कर्नाटक देश जिन-धर्म का आश्रय स्थान बन गया। पल्लवों, आदिकदंबों तथा गंगों की छत्रछाया में जैनधर्म का अत्यंत विकास हुआ था। कई छोटे राजवंशों ने भी जैनधर्म को विकसित होने के लिए उसका मार्ग प्रशस्त किया। इस प्रकार समय के रहते चालुक्यों ने भी बादामी में अपना राजतंत्र स्थापित किया और पूरे दक्षिण में जैन धर्म प्रचलित हुआ और उसकी जडें गहरी जमने लगी। हालाँकि कर्नाट देश तथा तमिलनाडु उसके प्रमुख, प्रबल तथा पुख्ता क्षेत्र थे। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण तथा अनोखी बात है कि प्राचीन तीन धर्म तथा दर्शनों.. वैष्णव, जैन तथा बौद्ध ने युग में अपना सम्मान तथा स्थान बनाए रखा। आलमपुर के प्रशस्ति का प्रारंभ इसप्रकार होता है... सो व्याद भागवतान बौद्धान जिनेन्द्रमतम-आश्रितान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org