Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya
Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha

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Page 55
________________ 12 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य संक्षेप में, पुलकेशि द्वितिय ने बनवासी तथा पिष्टपुर के प्रमुख किलों पर कब्जा किया और जिन लोगों ने उसका अधिपत्य नहीं माना उनसे लडते, संघर्ष करते, उनको अधीन बनाते हुए उसने अपनी जययात्रा आरंभ की। उसने चारों दिशाओं के भू-भाग को अपने अधीन कर दक्षिण में अपना झंडा गाड़ दिया। पुलकेशि ने 99,000 गाँवों के एक बृहत भूभाग पर अपना शासन जमाने का एक साहसी कार्य किया और मगन अदमरि (अदमरी का बेटा) अर्थात शत्रु राजाओं को अपने युद्धनगाडों की आवाज़ से भयभीत करनेवाला नाम अर्जित किया। लोहनेरा के ताम्रपत्र पर उसके लिए पूर्वापरसमुद्रधिप' विशेषण दिया गया है। अर्थात पूर्व-पश्चिम समुद्र का देवता। यह विशेषण इस बात का ही संकेत देता है कि उसका साम्राज्य दो समुद्रों के बीच के विशाल भाग तक फैला हुआ था। अपनी राजनीतिक प्रतिभा से पुलकेशि ने अपने भाइयों को प्रशासनिक कार्य का उत्तरदायित्व सौंपकर उनको सशक्त बनाया। धराश्रय जयसिंह और कुब्ज विष्णुवर्धन को क्रमशः नासिक तथा बेंगी प्रदेश का उपराजा बनाया। विष्णुवर्धन उपनाम बुद्धरस, वेंगी मंडल का प्रमुख बनने से पूर्व सातारा का उपराजा था। पुलकेशि की ख्याति और शक्ति ने कन्नौज के श्रेष्ठ सम्राट हर्षवर्धन को दक्षिण पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। दो महान योद्धा मिले और उन्होंने नर्मदा के तट पर अपने-अपने युद्ध शिविरों के पड़ाव डाले। किंतु अजेय हर्षवर्धन अपने जीवन में पहली बार, पुलकेशि का सैन्यबल देखकर हताश हुआ और उसने अपनी सेना पीछे हटायी। दोनों विवेकी तथा दूरदर्शी महान योद्धाओं ने एक दूसरे की शक्तिमत्ता को देखकर अपनी अपनी सेना को पीछे हटने का आदेश दिया और एकदूसरे का मान तथा सम्मान बनाए रखने के लिए यह समझौता किया कि नर्मदा नदी का दक्षिण भाग पुलकेशि के अधीन रहेगा। इस प्रकार पुलकेशि ने दक्षिण पथेश्वर तथा परमेश्वर जैसे असामान्य बिरुद अर्जित किए। __ वास्तव में चालुक्यों का अधिपत्य नर्मदा के दक्षिण तट तक फैला था जो अपने आप में कर्नाटक के उत्कृष्ट यश प्राप्ति का ही द्योतक था। __यह एक महान गौरव या विजय ही कहें, जिसमें रोमहर्षित करने वाले सारे गुण थे, एक लंबे अरसे से जिसे संजोया गया था। पुलकेशि ने पहले भी और बाद में भी कई अश्वारोही युद्ध किए थे किंतु दैदिप्यमान हर्षवर्धन पर उसने सोच समझ कर ही प्रहार करना चाहा और इसलिए उसने अपनी फौज को पीछे हटने का आदेश दिया था। कवि रविकीर्ति संभवतः इस रक्तसिक्त युद्ध का चश्मदीद गवाह रहा होगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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