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अष्टांगहृदयकी
१०१
विषय प्रभाव का निदर्शन ग्रंथकार का वचन
दशमोऽध्यायः । रसादि की उत्पत्ति छारसों के लाभ मधुरस के कर्म अम्लरस के गुण लवणरस के गुण तिक्तरस के गुण कटुरस के गुण कषायरस के गुण मधुरवर्ग के द्रव्यों के नाम अम्लवर्ग के द्रव्य लवणवर्ग के नाम तिक्तवर्ग के नाम कंटुवर्ग के नाम कषायवर्ग के नाम मधुरद्रव्यों के लाभ अम्ल और लवणवर्ग तिक्तकटु वर्ग कषायवर्ग के नाम रसों में शीतोष्णवीर्यता रसों की रूक्षता रसों की स्निग्धता रसका भारीपन रसका हल्कापन रसका संयोग रससंयोग के भेद तिरेसटरस भेदों का वर्णन रसकी सूक्ष्म कल्पना
एकादशोऽध्यायः । वातादिदोषों के कर्म धातु का कर्म मलका कर्म वृद्धवायु का कर्म वृद्धपित्त का कर्भ
पृष्टांक. | विषय
पृष्टांक. ९३ वृद्धकफ का कर्म
वडेहुएरसरक्त का कार्य १०२ वृद्धमांस का कर्म वृद्धमेद का कर्म वृद्धअस्थि का कर्म बड हुई मज्जा का कर्म वडेहुएवीर्य का कर्म वडेहुएपुरीष का कर्म वडेहुए अन्नका कर्म वढेहुए पसीने अन्यमल क्षीणवातादि के लक्षण रसादि की क्षीणता मलकी क्षीणता घ्राणादिमल की क्षीणता दोषादि की सामान्य क्षयवृद्धि मलकी क्षीणता का उपद्रव दोषों का आश्रय क्षयवृद्धि का उपचार रक्तादि की चिकित्सा पुरीषादि की चिकित्सा धातु क्षयबृद्धि का कारण क्षयवृद्धि की परंपरा दोषादि विगडने का क्रम ओजका लक्षण ओज का क्षय ओज की वृद्धि वृद्धि और क्षय की सामान्यचिकित्सा १०८ वृद्धि क्षय का कारण अन्य लक्षण दोषों को समान रखना
द्वादशोऽध्यायः। वायु का स्थान पित्त का स्थान कफ का स्थान प्रोणवायु
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