Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ प्रारंभसिद्धि ॥
कुळनो नाश करनार थाय बे, परंतु जो कदाच ते वाळक जीवे तो घणा हाथी घोमावाळो राजा थाय छे."
“नहं न लनइ इत्थ अहिदको न जीवई । मई पाय पत्थिर्ज न नित्तई ॥ १ ॥ "
“गंगांतमां खोवायेली वस्तु पाठी श्रावती नथी, सर्पदंश थयो होय तो ते मनुष्य जीवे नहीं, जन्मेलुं बाळक पण प्राये मरण पामे बे; तथा तेमां प्रयाण कर्य होय तो ते पण प्राये पाबो श्रावतो नथी."
विवाह वृंदावनमां संधि नामनो पण दोष कह्यो बे. ते या प्रमाणे."नक्षत्रयोग तिथिसंधिषु नामिकैका तिथ्यष्टविंशतिपलैः सहितोजयत्र" ।
" सर्वे नक्षत्र, योग अने तिथिनी संधिने विषे बन्ने बाजु अनुक्रमे एक घमी उपर पंदर, आठ ने वीश पळ सहित एक एक घमी संधिदोष कहेवाय बे एटले के नक्षत्रोनी संधिमा पहेला नक्षत्रना अंतनी एक घमी छाने पंदर पळ तथा पबीना नक्षत्रनी आरंजनी एक घमी ने पंदर पळ मळी कुल छाढी घमीनो संधिदोष कदेवाय बे.. ए.. रीते वे योगनी संधिमां पूर्व योगना अंतनी एक घर्मी ने श्रावपळ तथा पीना योगनी पण खरंजनी एक धर्मी अने व पळ मळी वे घर्मी अने सोळ पळ संधिदोष कवाय बे.. ए रीते वे तिथिनी संधिमां पूर्व तिथिनी अंतनी एक घमी छाने वीश पळ तथा पबीनी तिथिनी रंजनी एक घमी ने वीश पळ मळी बे घमी ने चाळीश पळनो संधिदोष कदेवाय बे. या संधिदोष मांगलिक कार्यमां तजवा योग्य बे.”
संधिदोष विषे विक्रमनो मतांतर या प्रमाणे वे.
“नक्षत्रराश्यो रविसंक्रमे स्यु, -रर्वाक् परत्रापि रसेन्दु १६ नाड्य | एका घी षट्पलसंयुतेन्दो - र्नाड्यश्चतस्रः सपचाः कुजस्य ॥ १ ॥ बुधस्य तिस्रो मनवः १४ पलानि, सार्धाश्चतस्रः पलसप्त जीवे । यशीतिनाढ्यः पलसप्त शौरेः, शुक्रस्य देयाः सपलाश्चतस्रः ॥ ॥” नक्षत्र अथवा राशिने श्रश्रीने सूर्यनुं संक्रमण होय एटले एक नक्षत्रर्थ वीजा नहमां थवा एक राशिथी बीजी राशिमां सूर्यनुं संक्रमण होय तो पूर्व नक्षत्र अथवा राशिनी तनी सोळ घर्मी तथा पबीना नक्षत्र अथवा राशिनी प्रारंभनी सोळ घमीने संधि नामनो दोष कहे बे. ए रीते चंद्रना संक्रमणमां एक एक घमी छाब ब पळ, मंगळना संक्रमणमा चार चार घमी ने एक एक पळ, बुधना संक्रमणमां त्रप त्रण घमी छाने चौद चौद पळ, गुरुना संक्रमणमां सामी चार चार घमी ने सात सात पळ, शनिना संक्रमणमा ब्याशी ब्याशी घमी ने सात सात पळ ने शुक्रनी संक्रांतिमां
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