Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ श्रारंसिधि॥ राशिथी तथा सिंह राशिथी बीजी राशि श्रावे एवां बीया बारमा श्रावे ते शुज . केटखाएक कहे जे के-"नामी विगेरे चारनी अनुकूळता होय तो परस्पर मध्यस्थपणावाळां बीया बारमां पण सारां ." ते विषे सारंग कहे बे के
"नामी १ योनि २ र्गणा ३ स्तारा ५ चतुष्कं शुजदं यदि ।
__ तदौदास्येऽपि नाथानां नकूटं शुलदं मतम् ॥ १॥" "जो नामी, योनि, गण अने तारा, ए चार शुन्न होय तो राशिना स्वामीन उदासीनपणुं (मध्यस्थपणुं ) बतां पण राशिकूट शुलदायी माने जे.” नामी अने तारानुं स्वरूप श्रागळ कहेशे. "सिंहना बीया बारमा सिवाय बीजां सर्वे बीया बारमा अशुन ३" एम व्यवहारप्रकाशमां कडं बे.
हवे राशिनुं नव पंचम कहे .श्रेयो मैत्र्यात्परे त्वाहुः कलिकृन्नवपञ्चमम् ।
एकरदे च जिन्नांशे श्रेयः शेषेषु च घ्योः ॥२३॥ अर्थ-नव पंचम राशिना स्वामीनी मैत्री होय तो शुन्न , केटसाक कहे जे के क्लेशकारक बे. एक राशिमां जिन्न अंशमां पण शुक्ल ने, अने बाकीनां राशिकूटोमां
बन्नेने शुज .
"नव पंचम स्वन्नावथी ज क्लेशनो हेतु , तेमां विवाह अयो होय तो संततिने हानि करनार " एम व्यवहारसारमां कडं . केटलाएक कहे जे के-बन्नेनी राशिठने परस्पर मैत्री होय ते नव पंचम शुन्न , अने एकनी मैत्री तथा बीजार्नु मध्यस्थपणुं होय तो ते मध्यम बे.
नव पंचमनी स्थापना. शुन्न नव पंचम । मध्यम नव पंचम
मिथुन मन
कके कके | वृश्चिक कन्या । मकर
मेष सिंह वृष कन्या मिथुन
तुला सिंह धनु तुला वृश्चिक मीन धनु मकर | वृष
कुंन
मेष
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