Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ श्रारंसिद्धि। "नृगोरुदय १ वारां ५ श ३ नवने पक्षण ५ पञ्चके ।
चन्नांशो १ दय ३ वारे च ३ दर्शने च ४ न दीदयेत् ॥१॥" "शुक्रनो उदय एटले शुक्र लग्नमां रह्यो होय १, शुक्रवार २, लग्नमां शुक्रनो नवांशो ३, शुक्रर्नु नवन वृष अने तुला ध, तथा शुक्रनुं ईक्षण एटले संपूर्ण दृष्टिवमे शुक्र लग्नने के सातमा स्थानने जोतो होय ५, था पांच वखते दीक्षा देवी नहीं. तथा चंजनो अंशचंधनो नवांशो १, चंजनो उदय एटले चं लग्नमां रह्यो होय २, चंनो वार-सोमवार ३, तथा चंनुं दर्शन , आ चार वखते दीक्षा लग्न देवू नहीं.” ए प्रमाणे उ वर्गनी शुद्धि जाणवी. तथा
जीवमन्दबुधार्काणां षड्दर्गो वारदर्शने।
___शुजावहानि दीक्षायां न शेषाणां कदाचन ॥ १॥" "गुरु, शनि, बुध अने सूर्यनो षड्वर्ग, वार अने दर्शन एटले दृष्टि, एटलां दीक्षाने विषे शुन्न ने, श्रने बीजा (चंड, मंगळ अने शुक्र )ना षड्वर्गादिक कदापि शुल नथी."वळी हर्षप्रकाशमां तो वृषांश शुक्रवारे होय तोपण ते वर्गोत्तम होवाश्री शुक्ल कह्यो . कहुं ने के
"मेसविसाणं मुत्तूण सेसरासीण पंचमे अंसे ।।
न य दिस्किज ज सो विणसइ तह तह पउँगाउँ ॥१॥" "मेष धने वृषना पांचमा अंश विना बीजी राशिना पांचमा अंशमां दीक्षा देवी नहीं, कारण के ते तथा तथा प्रयोगथी नाश पामे."
हवे विवाहमा लग्न अने अंश विगेरे कहे .विवाहे नाग्रहः कोऽपि लग्नानामिह केवलम् ।
नवांशा धनुराधार्धयुग्मकन्यातुलाः शुन्नाः॥१२॥ अर्थ-विवाहने विषे लग्ननो कां पण श्राग्रह नथी. अहीं तो केवळ धननो पूर्वार्ध, मिथुन, कन्या अने तुला एटली राशिना नवांशोज शुन्न .
श्राग्रह एटले अमुक .लग्नो ग्रहण करवां अने अमुक खन्नो त्याग करवां एवो जे नियम ते * आग्रह कहेवाय जे. जेम प्रतिष्ठा अने दीक्षामां लग्न संबंधी नियम के तेम विवाहमां खास नियम नथी. केवळ था विवाहना विषयमा गमे ते लग्न हो, परंतु नवांशो तो उपर कहेलाज मनुष्य जाति होवाथी ग्रहण करवा. बीजा ग्रहण करवा नहीं. रत्नमाळानाष्यमां कडं वे के-“मनुष्यांशेन्योऽन्यत्रासती दरिजा च स्यात्" "मनुष्य जातिना अंशोथी अन्य अंशोमां विवाह करवाथी ते स्त्री असती अने दरिन थाय ने." वळी केटलाक कहे जे के-"धनुषि परानवयुक्ता" "धनांश खन्न करवायी
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