Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 441
________________ ॥ पञ्चमो विमर्शः॥ ४०ए "त्रयः सौम्यग्रहा यत्र लग्ने स्युर्वलवत्तराः । बलवत्तदपि शेयं शेीनबलैरपि ॥१॥" "जे लग्नमां त्रण सौम्य ग्रहो अत्यंत बळवान् होय ते लग्न पण बीजा ग्रहो हीन बळवाळा उतां पण बळवान् बे एम जाणवू." ॥इति एकादशं मिश्रघारम् ॥ ११ हवे समग्र ग्रंथना अर्थनुं समर्थन करे जे. इत्युक्तखेटबलशालिनि दोषमुक्ते, लग्ने शुन्नैश्च शकुनैः शशिनः प्रवाहे। कार्याणि नूमिजलतत्त्वगतौ कृतानि, निर्दनमाञ्युदयिकी प्रथयन्ति लक्ष्मीम् ॥ ६ ॥ अर्थ-या प्रमाणे कहेला ग्रहोना बळे करीने शोजता अने दोपे करीने रहित एवा लग्नने विषे शुल शकुन जोश्ने चंड नामी वहेती होय त्यारे तेमां पण पृथ्वी तत्त्व के जळ तत्त्वनी गति होय त्यारे ( तेवा समये) करेखां कार्यो दंन रहित बन्युदयनी लक्ष्मीने विस्तारे बे. खेऽटन्ति-आकाशमां गति करे ते खेट कहेवाय , अहीं अट् धातुश्रकी अचू प्रत्यय थयो बे, अने "तत्पुरुषे कृति" ए सूत्रथी सप्तमी विनक्तिनो अलुक् थवायी खेट शब्द सिख थयो बे. खेट एटले ग्रहो, तेमनुं बळ. आम कहेवाथी तिथि विगेरेनुं बळ पण जाणवं. दोषमुक्ते एटले मोटा दोष रहित, कारण के सर्वथा निर्दोष लग्न घणा दिवसोए करीने पण मळी शकतुं नथी, तेथी थोमा दोषवाळु अने घणा गुणवाळु लग्न ग्रहण करीने कार्यों करवां, परंतु सर्वथा निर्दोष लग्न श्रावशे त्यारे कार्य करशुं एम धारीने घणो विलंब करवो नहीं, कारण के धन, यौवन अने आयुष्यनी स्थिरता ले नहीं. एवो अहीं अभिप्राय बे. कडं बे के “यस्मादशेषगुणसंपदहोनिरस्पैर्होरा विदाऽपि गणकेन न लन्यतेऽत्र । तस्मादनहपगुणसंयुतमट्पदोष, लग्नं नियोज्यमखिलेष्वपि मङ्गलेषु ॥१॥" । "जेथी करीने समग्र गुणनी संपदावाळु लग्न होराने जाणनार गणक (जोशी) पण थोमा दिवसमा मेळवी शकतो नथी तेथी करीने सर्व शुल कार्यमां घणा गुणवाळु तथा अस्प दोषवाळु लग्न ग्रहण करवं” । "स्वट्पो नानर्थकृदोषो लग्ने बहुगुणे नवेत् । तोयबिन्दुरिव दिप्तः समिधे कृष्णवर्त्मनि ॥२॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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