Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 518
________________ ॥ दिनशुद्धिः ॥ एम वजोग, कुलिक, जा (विष्टि ) तथा उल्कापात विगेरे जे दिवसे होय ते दिववर्जव. संक्रांतिनो दिवस, तेनी पहेलानो एक दिवस ने तेनी पीनो एक दिवस दिवस वर्जवा. तथा ( सूर्य चंडना ) ग्रहणमां पहेलानो एक दिवस, एक ग्रहनो दिवसाने त्यारपबीना सात दिवस एम नव दिवस वर्जवा. १२३. सुतिही सुवारे सिद्धाऽमियराजजोगपमुहाई । ४८२ जत्य हवंति सुाई सुहको तं दिशं गिऊं ॥ १२४ ॥ वने दिवसे ज्यारे सिद्धि योग, अमृत योग अने राज योग विगेरे शुभ योगो होय ते दिवस शुभ कार्यमां ग्रहण करवो. १२४. दत्थऽणुराहा-साई सवणुत्तर - मूलरोहिणी पुस्सा । as-goat दिकपा सुहा रिका ॥ १२५ ॥ सु, हस्त, अनुराधा, स्वाति, श्रवण, त्रण उत्तरा, मूळ, रोहिणी, पुष्य, रेवती ने पुननत्र दीक्षा ने प्रतिष्ठामां शुज बे. १२५. सिसिय जिस-पू-ना एसु वि दिरका सुहा विणिद्दिया । मह - मिग-धणि- पहा कुका वजित सेसाई ॥ १२६ ॥ उपर कह्यां उपरांत अश्विनी, शतभिषा अने पूर्वाभाषपद, एटलां नक्षत्रोमा प दीक्षा श्रपवी सारी कही बे. तथा मघा, मृगशिर ने धनिष्ठा, ए नक्षत्रोमां पण प्रतिष्ठा करवी, बाकीनां नक्षत्रो वर्ज्य बे. १२६. कारावगस्स जम्मे दसमे सोलसमेार से रिके । वीसे पणवीसे न पहा कह वि कायवा ॥ १२७ ॥ प्रतिष्ठा करावनारना जन्मनुं, दशमुं, सोळमुं, अढारमुं, त्रेवीशमं श्रने पचीश, sarai नक्षत्रो सारा होय तोपण तेमां सर्वथा प्रतिष्ठा करवी नहीं. १२७. संजागयं रविगयं विड्डेरं सग्गदं विलंब च । गर्दा जिन्नं वजए सत्त नरकत्ते ॥ १२८ ॥ राहु शुभ नक्षत्र पण संध्यागत होय, सूर्यगत होय, विड्वर होय, ग्रह सहित होय, विलंबित होय, राहुथी हणायुं होय के ग्रहथी नेदायुं होय, या सात प्रकारनां नक्षत्रो वर्जवा लायक बे. १२८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 516 517 518 519 520 521 522 523 524