Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 472
________________ ४३६ ॥ ग्नशुद्धिः ॥ art (पूर्वाषाढाथी ) गणतां जेटलामुं ( १० ) थाय तेटलामुं ( १० ) अश्विनीथी चंद्रनुं नक्षत्र ( ज्येष्ठा ) होय तो एकार्गल थाय बे. ७०-७१. एकार्गलनी वीजी रीत या प्रमाणे बे. - तिरियं तेरस रेहा एक्का तम्मनगामिणी ननुं । काऊ चक्क मिणं सिर रिकं दिऊ तस्स सिरे ॥ २ ॥ विसमे जोगे इकं अहावीसं समंमि दिजाहि । श्रद्धी कयंमि तंमि उ जं तं इह मुणसु सिर रिकं ॥ ७३ ॥ सिराहा व य मियसिर मूलो पुण्वसू पुस्लो । असलेस महा चित्ता विरकंनासु सिररिरका ॥ ७४ ॥ मी तेर रेखा करवी, तेमनी मध्ये एक उभी रेखा करवी, ए प्रमाणे चक्र करीने ना मस्तक पर शिर नक्षत्र देवुं, पबी वीजां नक्षत्रो अनुक्रमे मूकवां शिर नक्षत्र कयुं समजवुं ? तेनी रीत या प्रमाणे – विष्कंनादिक (अशुभ) योगोमांनो जे योग इष्ट दिवसे होय ते योग जो विषम ( एकी) होय तो तेमां एक उमेरवो छाने बेकी होय तो मां श्रठ्यावीश उमेरवा. पी तेने अर्धा करवा. जे शेष रहे तेटलामुं नक्षत्र शिर नक्षत्र जाएवं एटले के तेटलामुं नक्षत्र मस्तक पर मूकवुं तेनां नाम या प्रमाणे बे. - विष्कंज योग होय तो मस्तक पर अश्विनी आवे, अतिगंग होय तो अनुराधा आवे, शूळ होय तो मृगशिर, गंग होय तो मूळ, व्याघात होय तो पुनर्वसु, वज्र होय तो पुष्य, व्यतिपात होय तो अश्लेषा, परिघ होय तो मघा ने वैधृति होय तो चित्रा नक्षत्र मस्तक पर वे बे. ( शुभ योगमां एकार्गल थतोज नथी. ) १२-१३ - १४. सिररिरका कमेणं सत्तावीसं पि दिऊ रिकाई । रेहासु तासु कमसो रिकेसु ा ठवसु ससिसूरे ॥ ७५ ॥ एक्काए रेहाए जइ पुन्नि वि हुंति चंद आच्चा । एक्कग्गलो हु एवं जायइ नरकत्तदोस त्ति ॥ ७६ ॥ पछी मस्तकना नक्षत्रथी अनुक्रमे ते रेखा उपर अनुक्रमे सत्यावीश नक्षत्रो मूकवां. बी ते नक्षत्रो उपर ज्यां संजवे त्यां सूर्य ने चंद्र मूकवा. ७५. हवे जो एकज रेखा पर सामसामा सूर्याने चंद्र बन्ने श्राव्या होय तो ते एकार्गल योग थयो जावो. श्रा नो दोषरूप बे. ७६. इति एकार्गलद्वारम् । । इति मूलधारेषु निर्दोषनक्षत्रद्वारम् । ए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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