Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 495
________________ ॥ दिनशुद्धिः॥ एए राज योगसूरे सुके बुहे नोमे जहा तीया य पुन्निमा। बिंतरा जरणीमुरका राजजोगो सुहावहो ॥ ३० ॥ रवि, शुक्र, बुध के मंगळवारे जत्रा (बीज, सातम अने बारश ), त्रीज के पूर्णिमा होय तथा जरणी, मृगशिर विगेरे बवे अांतरावाळां (न. मृ. पुष्य. पू-फा. चि. अनु. -पा. ध. उ-ना..) नक्षत्रोमांथी को पण होय तो ते राज योग कहेवाय जे. ते खकारक बे. ३०. स्थविर योगथविरो गुरु सणि तेरसि रित्तहमि कित्तिया पुगंतरिया। रुअाणसणाई अपुण(णो)करणं हं कुजा ॥३१॥ गुरुवारे के शनिवारे तेरश, रिक्ता ( चोथ, नोम अने चौदश) के आग्म होय ने कृत्तिकाथी आरंजीने बबे अांतरावाळां (कृ.श्रा. अश्ले.ज-फा. स्वा.ज्ये. उ-पा. . रे.) नक्षत्रोमांथी कोइ पण होय तो ते स्थविर योग कहेवाय . आ योगमां व्याधिनो द (नाश ) श्रने अनशन विगेरे फरीश्री नहीं करवानां कार्यो करवामां आवे . ३१. ____ हवे यमल तथा त्रिपुष्कर योग कहे जे.मंगल गुरु सणि जद्दा मिग चित्त धणिज्यिा जमलजोगो। कित्ति पुण उ-फ विसाहा पू-न उ-खाहिं तिपुकर ॥३२॥ | मंगळ, गुरु के शनिवारे ना तिथि (२-७-१२) होय तथा मृगशिर, चित्रा अने निष्ठा नक्षत्र होय तो ते यमल नामनो योग पाय . तथा तेज वार अने तेज तिथिए हो कृत्तिका, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वानाप्रपद के उत्तराषाढा होय तो विपुष्कर योग थाय . ३२. पंचक योगः पंचग धणिक अझा मयकिअवजिजा जाम दिसिगमणं । एसुतिसु सुहं असुहं विहिथं पुति पण गुणं हो ॥ ३३॥ धनिष्ठाना अर्ध नागथी रेवति पर्यत (ध. श.पू-ला. उ-ला. रे.) पंचक कहेवाय ने. प्रा योगमां मृतक कार्य तथा दक्षिण दिशामां गमनने वर्जवं. ा त्रणे योगमां करेलु गुज तथा अशुन कार्य अनुक्रमे बम', त्रण गुणुं अने पांच गुणुं थाय . ३३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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