Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 507
________________ ॥ दिनशुद्धिः ॥ ४७१ चैत्र मासथी उत्तर दिशाने आरंजीने संहारवमे ( उत्क्रमवमे) दिशामां एक विदिशिमां बे मास ए प्रमाणे सूर्योदयसमये होय बे, एटले के चैत्रमां उत्तर , वैशाख अने ज्येष्ठमां वायव्य खूणे, अषाढ मासमां पश्चिम दिशाए, श्रावण भाऊपदमां नैईत्य खूणाए, आश्विन मासमां दक्षिण दिशाए सूर्योदयसमये होय दि. जे मासमां जे दिशा विदिशामां कहेल बे त्यांथी आवे दिशामां क्रमे करी दिशामां छाढी घमी ने विदिशामां पांच घमी ए प्रमाणे फरे बे. तात्पर्य एबे के आसमां सूर्योदयसमये प्रथम अढी घमी उत्तरमां, पबी पांच घमी ईशानमां, पी मी पूर्वमां इत्यादिक्रमे फरे बे. वैशाख तथा ज्येष्ठ मासमां प्रथम पांच घमी वायव्य पी श्रढी घमी उत्तरमां ए क्रमश्री सदा फरे बे. या शिव प्रयाणसमये पाबळ 'जमणो दोय ते शुभकारक बे. ०१. शिवयंत्र या प्रमाणे वायव्य वैशाक ज्येष्ठ घमी ए पश्चिम अषाढ घमी शा श्रावण भाद्रपद घमी नैत्य उत्तर चैत्र घमी || Jain Education International शिवचक्र श्रश्विन घमी ॥ दक्षिण रविविचार. - ईशान माघ फाल्गुन घडी ए पूर्व पोष घमी शा अनि कार्तिक मार्गशीर्ष घमी रवि रत्तिनंतपाठे पुवाइ पुन्नि पुन्नि पहर कमा । दादिपुडि विहारे वामो पुछि पवेसि सुहो ॥ ८२ ॥ त्रिना बेला पहोरथी बबे पहोर सुधी रवि पूर्वादिक चार दिशाउंमां होय बे, के रात्रिनो बेलो तथा दिवसनो पहेलो ए वे पहोर सुधी रवि पूर्वमां होय बे. बीजो तथा त्रीजो प्रहर दक्षिणमां, चोथो तथा पांचमो प्रहर पश्चिममां, बहो तथा मो प्रहर उत्तरमां, पी श्रावमो प्रहर रात्रिना तनो होवाथी पूर्वमां आवे छे. श्र प्रयाणमां दक्षिण ( जमणो ) तथा पाबळ सारो बे, अने प्रवेशमां माबो तथा छ सारो बे. ०२. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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